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करवा चौथ

डॉ.साधना तोमर
बागपत(उत्तर प्रदेश)
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नीरा सुबह-सुबह घर के सब कार्य निपटाने में लगी थी। कालेज से उसने आज छुट्टी ले ली थी,साथ ही धीरे-धीरे कोई गीत गुनगुना रही थी।
“क्या बात है आज बड़े मूड में हो,कालेज नहीं जाना क्या ?”
“नहीं,आज मैंने छुट्टी ले ली ?”
“अच्छा चलो दो कप चाय बना लो,बालकनी में साथ-साथ बैठकर पीते हैं।”
“आपके लिए बना देती हूँ,मेरा तो व्रत है।”
“मुझे एक बात बताओ! तुम इतने व्रत क्यों करती हो ? पूरा दिन भूखी रहोगी,कमजोरी आएगी और फिर क्या होता है व्रत करने से ?”
“देखिए ये तो श्रृद्धा और विश्वास की बात है। आप नहीं समझेंगे।”
“अगर तुम्हारे अनुसार इस व्रत को करने से मेरी उम्र बढ़ती है,तो फिर तो मुझे भी तुम्हारी लम्बी उम्र के लिए व्रत करना चाहिए। मैं अगर नहीं करता तो मैं तुमसे प्यार नहीं करता ?”
“यह कोई तर्क-वितर्क का विषय नहीं है। देखिए! मैंने आपसे पहले भी कहा कि ये अपने-अपने विश्वास और आस्था की बात है। हमारे कितने पर्व हैं जो हम अपनी आस्था और विश्वास के कारण ही मनाते हैं। भारतीय संस्कृति विविध पर्वों को अपने में समेटे है। जब हम इन पर्वों को हर्षोल्लास से मिल-जुल कर मनाते हैं तो ये हमारे रिश्तों को मधुरता और समरसता से सराबोर कर देते हैं। होली हो या दिवाली,ईद हो या क्रिसमस,लोहड़ी हो या बैसाखी,करवा चौथ हो या रक्षाबंधन,ये पर्व ही तो हमें परस्पर प्रेम और सौहार्द से रहना सिखाते हैं,आपसी रिश्तों की मर्यादा का ज्ञान कराते हैं। प्रेम के मोतियों से रिश्तों की सुन्दर माला का निर्माण करते हैं। आप नहीं समझ सकते मेरे उस आत्मिक आनंद को,जो मैं आपके लिए करवा चौथ,अपने बच्चों के लिए अहोई-अष्टमी,भाई के लिए रक्षाबंधन पर व्रत करके और परम पिता परमेश्वर की ध्यान-साधना करके प्राप्त करती हूँ। इन पर्वों पर बुजुर्गों को उपहार भेंट कर उन्हें खुशी प्रदान करती हूँ। आप अगर नहीं मानते तो न मानें पर मेरे उस आत्मिक आनन्द से मुझे वंचित न करें।
“तुमसे कोई नहीं जीत सकता। चलो भाई अपनी आत्मिक आनन्द की अनुभूति करो। मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।”

परिचय-डॉ.साधना तोमर का साहित्यिक नाम-साधना है। २९ दिसम्बर १९६७ क़ो पन्तनगर (नैनीताल) में जन्मीं साधना तोमर वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्थित बड़ौत (बागपत) में स्थाई रूप से बसी हुई हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली डॉ.तोमर ने एम.ए.(हिन्दी), एम.एड.,नेट,पी-एच.डी. सहित डी.लिट्.की शिक्षा हासिल की हुई है। आपका कार्यक्षेत्र-बागपत स्थित महाविद्यालय में सह प्राध्यापक (हिन्दी विभाग)का है। सामाजिक गतिविधि में आप राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी होकर विविध साहित्यिक मंचों से जुड़ी हुई हैं।लेखन विधा-गीत,कविता,दोहा,लेख और लघुकथा आदि है। प्रकाशन में ३ पुस्तकें(एक सन्दर्भ पुस्तक-कवि शान्ति स्वरूप कुसुम:व्यक्तित्व एवं कृतित्व,जीवन है गीत-गीत संग्रह और साधना सतसई-दोहा संग्रह) सहित २९ शोध- पत्र आपके खाते में हैं। प्राप्त सम्मान- पुरस्कार में काव्य रचनाओं पर ३१ राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान,पुरस्कार तथा उपाधि प्राप्त हैं। लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक विसंगतियों को दूर करने का प्रयास तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना के साथ ही आध्यात्मिक चेतना का विकास करना है। पसन्दीदा हिन्दी लेखक-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद और प्रेरणापुंज-गुरु डॉ.सुभाषचंद्र कालरा हैं। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार-पत्रों और संग्रह में छपी हैं। जीवन लक्ष्य-अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों का विकास करना है। देश के प्रति विचार-
“राष्ट्र-धर्म अब यही है कहता, 
दुश्मन को दिखला दें हम। 
अलग नहीं हम एक सभी है, 
सबक उसे सिखला दें हम।

हिन्दी हिन्द की आत्मा,
इस बिनु नहीं विकास। 
अस्मिता यह राष्ट्र की, 
जन-जन का विश्वास॥”

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