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रत्न चतुर्दश

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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(रचना शिल्प:मापनी मुक्त सम मात्रिक छंद है यह। १६,९ मात्रा पर यति अनिवार्य चरणांत २१२, २ चरण सम तुकांत,४ चरण का छंद)

मंदराचल को बना मथनी,रस्सी शेष को।
देवदनुज सबने मिल करके,मथा नदीश कोll
किया अथक प्रयास सभी ने,रहे वहां डटे।
कर लिया प्राप्त मधुरामृत जब,सभी तभी हटेll

रत्न चतुर्दश निकले उससे,जो परिणाम था।
सर्वप्रथम था विष हलाहल,जो ना आम थाll
तब पान किया शिव ने उसका,तारा सृष्टि को।
मन का मंथन करे हम सभी,खोले दृष्टि कोll

फिर निकली थी कामधेनु गो,क्रम द्वितीय था।
ग्रहण किया ऋषियों नेउसको,जो ग्रहणीय थाll
उच्चैश्रवा अश्व था निकला,रंग श्वेत था।
भूप बलि ने लिया था जिसको,जो असुरेश थाll

निकला तब फिर गज ऐरावत,सागर गर्भ से।
देवराज ने ग्रहण किया था,सबके तर्क सेll
कौस्तुभमणि हुई आविर्भूत,प्रतीक भक्ति का।
सुशोभित विष्णु का वक्ष हुआ,निशान शक्ति काll

अगले क्रम पर कल्पवृक्ष था,शोभा स्वर्ग की।
जो प्रतीक था इच्छाओं का,थी हर वर्ग कीll
सुंदरी अप्सरा भी निकली,रंभा नाम था।
मन में छिपी वासनाओं का,काम तमाम थाll

निकली थी फिर देवी लक्ष्मी,उस जलधाम से।
नारायण का वरण किया था,जो श्री नाम सेll
सागर मंथन से थी निकली,देवी वारुणी।
दैत्यों ने ग्रहण किया जिसको,थी मदकारिणीll

जो शीतलता का प्रतीक है,उज्ज्वल चन्द्रमा।
शिव मस्तक को पाया जिसने,मिले परमात्माll
पारिजात भी प्रकट हो गया,अनुपम वृक्ष था।
छूने से मिट जाए थकान,सुख का अक्ष थाll

शंख पाञ्चजन्य प्रकट हुआ,जय प्रतीक था।
धारण किया विष्णु ने जिसको,नाद सुललित थाll
लेकर अमृत कलश थे प्रगटे,प्रभु धनवंतरी।
निरोगी तन और निर्मल मन,बात बड़ी खरीll

इस समुद्र मंथन से सीखे,सब नर सृष्टि में।
मन का मंथन करे व धारे,निर्मल दृष्टि मेंll
इन्द्रिय एकादश वश करके,खोजे आत्म को।
चिंतन और मनन कर धारे,सब परमात्म कोll

रत्न चतुर्दश तो प्रतीक है,बस पुरुषार्थ का।
मानव भी ज्ञान ग्रहण करे,सृष्टि यथार्थ काll
करें पुरुषार्थ मिल कर के सब,संभव काम हो।
निकालें विष से हम अमृत को,तब आराम होll

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा)डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बांदीकुई (राजस्थान) में जन्मे डॉ.सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी., साहित्याचार्य,शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ व्याख्यात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘नवनीत’ है। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो 
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

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