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करूण गुहार

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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स्वच्छ जमीन-स्वच्छ आसमान…

प्रभु ने रची प्रकृति की सुंदर आकृति,
स्वार्थी जन बिगाड़ते हैं उसकी कृति।
तभी तो करूणा से पुकारती प्रकृति,
कहे देखो! कैसी हुई है, मेरी दुर्गति॥

जागो मानव! तुम स्वकर्तव्य निभाओ,
दया करो, मुझे नहीं अब ओर सताओ।
प्रकृति का ही, तुम भी तो, एक अंश हो,
ज्ञान से भरे, सभी प्राणियों में श्रेष्ठ हो॥

धरा-गगन जो करते जाओगे प्रदूषित,
प्राणीमात्र का जीवन बनेगा असुरक्षित।
सोचो जो मेरा अस्तित्व ही नहीं बचेगा,
कहो कैसे धरा पर, प्राणी जी सकेगा ?

यहाँ पर घनघोर हाहा-कार मच जाएगा,
प्राणवायु के बिना, दम ही घुट जाएगा।
जीवन का नामों-निशां तक मिट जाएगा,
चहुंओर दुखमय परिदृश्य को पाएगा॥

करो माँ तुल्य भू, पितृसम नभ संरक्षित,
पुत्र-पुत्रियों करते चलो प्रयास कदाचित।
प्रकृति की रक्षा से ही स्वरक्षण पाओगे,
स्वच्छ भू-नभ से गीत खुशी के गाओगे॥

वृक्षारोपण कर शुद्ध प्राणवायु मिलेगी,
प्राकृतिक रत्नों की सौगात भी बरसेगी।
जो प्रकृति-चक्र प्रतिकूलता से बचाओगे,
तन-मन रोगमुक्त होगा, शुभफल पाओगे॥

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