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कहानी के करीब जाकर खड़ी हो जाती है लंबी लघुकथा-डॉ. शुक्ल

पटना (बिहार)।

आज जबकि ७००-८०० पृष्ठ के उपन्यास २००-३०० पृष्ठ में सिमट गए हैं। ऐसे समय में लघुकथा लंबी-लंबी लिखा जाना, मेरी समझ में ठीक नहीं। आकार में लंबी लघुकथा कहानी के करीब जाकर खड़ी हो जाती है। यदि ऐसा आगे भी चलता रहा तो कहानी और लघुकथा का भेद ही समाप्त हो जाएगा। दरअसल, तथाकथित लेखक खुद के नाम को आगे लाने के लिए नए-नए प्रयोग करने का मोह रखने के कारण कुछ न कुछ इस तरह का करते रहते हैं, जो लघुकथा के लिए हितकर नहीं है।
यह बात लेखकों द्वारा लेखकों के लिए प्रायोजित कार्यक्रम में सीखने और सिखाने के उद्देश्य से इंदौर (मप्र) के विख्यात लघुकथाकार डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल ने सिद्धेश्वर से ऑनलाइन भेंटवार्ता में कही। आपने लघुकथा से संदर्भित सवालों का सारगर्भित जवाब दिया।
अवसर साहित्य पाठशाला के इस अंक में संयोजक सिद्धेश्वर ने संचालन के क्रम में कहा कि, लघुकथा की बारीकियों को समझने के लिए आभासी या ऑनलाइन पाठशाला की जरूरत है। इस पाठशाला में वरिष्ठ साहित्यकार निर्मल कुमार डे ने इंदु उपाध्याय, हरिराम, अलका वर्मा आदि की लघुकथाओं को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए अपेक्षित सुधार पर व्याख्यान दिया। वरिष्ठ साहित्यकार सिद्धेश्वर ने बताया कि, लघु कथाकारों को काल दोष से बचना चाहिए।
इनके अतिरिक्त सपना चंद्रा, पुष्प रंजन, संतोष मालवीय, नमिता सिंह, योगराज प्रभाकर, रजनी श्रीवास्तव, माधुरी जैन, डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, विजया कुमार, डॉ. पुष्पा जमुआर आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और चर्चा में भाग लिया।

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