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काबिले तारीफ

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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रीना बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव की थी। उसका यह स्वभाव माँ के लिए बड़ी परेशानी की वजह थी, चूंकि पढ़ने-लिखने में बहुत अव्वल होने के कारण पिता उसके व्यवहार को इतनी अहमियत ना देते और वह भी। उसने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली तो पिता ने एक अच्छा लड़का देख उसका विवाह करा दिया। वह भी एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था। रीना ने भी विवाह के कुछ महीने बाद ही कोर्ट ज्वाइन कर लिया, जिससे माता-पिता घर पर बिल्कुल अकेले रह जाते।
एक दिन पिता की तबीयत कुछ बिगड़ गई। माँ असमंजस में पड़ी तो राजेश को फोन किया, मगर मोबाइल स्विच ऑफ होने के कारण कुछ बता न सकी। पुनः उसी शहर में रह रही अपनी बेटी को सूचना दी, मगर शाम तक आने की खबर सुन उदास मन से माँ ने रीना को फोन किया। रीना खबर सुनते ही फौरन घर पहुंची, पिताजी की हालत देख टैक्सी कर अस्पताल ले गई।
डॉक्टर साहब ने जांच कर दवाइयों का पर्चा थमाते हुए कहा-‘इन्हें टेंशन से दूर रखें। टेंशन की वजह से ही रक्त चाप अधिक हो गया था और…..।’
‘…जी, डॉक्टर साहब।’
डॉक्टर साहब ने पलट कर पूछा-“बेटा यह तुम्हारे पिता हैं क्या ?”
“…जी, पिता ही हैं, लेकिन रिश्ते में मेरे ससुर लगते हैं।”
…डॉक्टर साहब ने फिर पूछा- “आपके पति…?”
“…ऑफिस में हैं, तो मैं लेकर आ गई।
उनके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट देख रीना पूछ बैठी-“क्या मुझे नहीं आना चाहिए था ?”
“…नहीं बेटा, ऐसा नहीं है। मैं सोच रहा हूँ कि चालीस साल से मैं यहाँ अस्पताल में बैठा हूँ, पर आज तक कभी एक बहू को अपने ससुर को इलाज के लिए लाते नहीं देखा। आपकी बहू, सचमुच करोड़ों में एक है।”
“…जी डॉक्टर साहब, यह मेरी बहू नहीं, बेटी है।”
…इतने में रीना ने कहा-“नहीं पापा, मुझे बेटी नहीं, बहू ही रहने दीजिए, क्योंकि बेटियों को इस समाज में पराया धन समझा जाता है। जब तक ब्याह न कर दे, माता-पिता के सिर पर बोझ बनी रहती है।”
इतने में घर से सूचना पाकर राजेश वहां पहुंचा। थोड़े कड़े शब्दों में रीना को कहा-“रीना इतना हो गया, तुमने बताना भी जरूरी नहीं समझा! पापा को कुछ हो जाता तो ?”
“…कुछ नहीं होता बेटा! जिसकी आपकी श्रीमती जैसी बहू हो, उसे कभी कुछ नहीं हो सकता। रियली यू प्राउड टू यू शि इज योर वाइफ।”
इतना सुन तीनों मुस्कुरा कर वहां से चल दिए। घर पहुंच कर माँ के चेहरे पर शिकन देख बहू बोली-‘परेशान न होइए माँ, पिताजी पहले से काफी बेहतर है।”
माँ ने भी पिता को बैठाकर बहू को हाथ फेरते हुए बोली-“बेटा आज तुमने जो किया है, सचमुच काबिले तारीफ है।”
तब तक पिताजी भी बोल पड़े-“हाँ, डॉक्टर साहब भी बोल रहे थे।” इतने में राजेश बोला-“मैं भी पापा….।”
“…हाँ।” इतना कह सपरिवार गले लग हँस पड़े…।

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