कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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काश! मैं अंधा होता तो,
नहीं देख पाता इन
कुटिल और हृदय से,
गंदे इंसानों को।
काश! मैं अंधा होता तो
नहीं देख पाता समाज में,
अभद्र परम्पराओं को।
काश! मैं अंधा होता तो,
नहीं देख पाता
गरीबों के पेट पर,
चल रही कुदाल को।
काश! मैं अंधा होता तो
नहीं देख पाता
ईर्ष्या से जल रहे
कुंठित मानवता को।
काश! मैं अंधा होता तो
नहीं देख पाता।
नारी संग हो रही,
गंदी बर्बरता को।
काश! मैं अंधा होता…!!