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कुशल नेतृत्व के धनी रहे ‘सरदार’ वल्लभभाई पटेल

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’
अल्मोड़ा(उत्तराखंड)

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स्वतंत्रता आंदोलन के ‍महावीर,कुशल नेता,कर्मठ एवं दृढ़ व्यक्तित्व के धनी सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत माता के उन वीर सपूतों में से एक थे,जिनमें देशसेवा की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। अपनी दृढ़ता,आत्मबल,दृढ़ संकल्प शक्ति,अटल शक्ति,धैर्य, आत्मविश्वास,साहस और निर्णय क्षमता के कारण ही वह ‘लौह पुरुष’ के नाम से जाने जाते थे। वह कम बोलते थे,काम अधिक करते थे। सरदार पटेल एक सच्चे राष्ट्रभक्त ही नहीं थे,अपितु वे ‌ भारतीय संस्कृति के महान समर्थक भी थे। सादा जीवन-उच्च विचार,स्वाभिमान,देश के प्रति अनुराग,यही उनके आदर्श थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ५६२ छोटी-बड़ी रियासतों को साथ लेकर विशाल भारत संघ बनाने का मुख्य श्रेय सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही जाता है।
#पटेल का जीवन परिचय-
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नाडियाद ग्राम में साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम ‘वल्लभ झाबर भाई पटेल’ था। उनके पिता झाबर भाई पटेल और माता लाड़बा पटेल थी। यह अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। इनके पिता भी एक महान देशभक्त थे। देशभक्ति का पाठ उन्होंने पिता से ही पढ़ा था।
#स्वाभिमानी धैर्यवान एवं निडर व्यक्तित्व के धनी-
सरदार वल्लभ भाई पटेल बचपन से ही काफी निडर थे। कहा जाता है कि बचपन में उनको एक बड़ा-सा फोड़ा हो गया था। उन्होंने उसको अपने ही हाथों से लोहे की सलाख गर्म करके फोड़ डाला था। उनके शालेय जीवन में भी यही निडरता देखने को मिलती है। जहां वे पढ़ते थे वहां के एक शिक्षक बच्चों को अपनी ही दुकान से किताबें खरीदने के लिए विवश करते थे। उनकी धमकी से डर कर कोई उनका विरोध नहीं कर पाता था,किंतु सरदार पटेल ने बच्चों की हड़ताल कराकर शिक्षक को ऐसा करने से रोक दिया। सरदार पटेल एक गरीब परिवार से थे। जब उन्होंने देखा कि उनके भाई विट्ठल को पढ़ने में कठिनाई आ रही है तो उन्होंने महाविद्यालय की पढ़ाई का विचार त्याग दिया। आर्थिक तंगी से महाविद्यालय में पढ़ने के बजाय किताबें खरीदने में पैसा खर्च कर घर पर ही पढ़ने का निर्णय लिया। वे बहुत अध्ययन करते थे। उन्होंने २२ साल की उम्र में हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की और परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए। ३६ वर्ष की उम्र में वकालत पढ़ने इंग्लैंड चले गये। उन्होंने वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में सन १९१० में उत्तीर्ण की। इस परीक्षा में अच्छे अंक आने पर उन्हें ₹ ७५० बतौर पुरस्कार में मिले और उनकी फीस भी माफ हो गई। वकालत करने बाद इंग्लैंड से वापस आकर अपने देश में ही अहमदाबाद में वकालत करने लगे।सरदार पटेल देश की सक्रिय राजनीति में सन १९१७ से आए। जलियांवाला बाग हत्याकांड में जब निर्दोषों का संहार हुआ,उसी के विरोध में उन्होंने वरिष्ठ विद्यार्थियों के सहयोग से राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के लिए काशी विद्यापीठ हेतु जन सहयोग से १९ लाख रुपए एकत्र कर सहयोग किया। नागपुर में सिविल लाइंस में राष्ट्रीय झंडे के साथ जुलूस निकालने पर जब प्रतिबंध था,तब सरदार पटेल ने स्वयं जाकर झंडा सत्याग्रह का संचालन किया। इसी दौरान उन्होंने एक मुसलमान खौफनाक डाकू के आतंक से वहां के निवासियों को मुक्ति दिलाई।
#स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका-
जुलाई सन १९१९ में महात्मा गांधी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर सरदार पटेल ने बारदोली में चल रहे स्वदेशी आंदोलन में नेतृत्व करने के साथ-साथ शराब पीने पर प्रतिबंध लगाया। वहां की जनता ने आपके कुशल नेतृत्व को देखते हुए ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। सन् १९३० के नमक सत्याग्रह को सफल बनाने में पटेल का बड़ा योगदान रहा। उनके सत्याग्रह की घोषणा से घबराकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। १९४६ को स्थाई सरकार बनी तो गृह मंत्री नियुक्त होते ही उन्होंने विभाजन के खिलाफ होते हुए भी उस समय की गंभीर समस्याओं में अपना आपा नहीं खोया। जब भारत आजाद हुआ तो वह भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री बने। उप-प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए १२ नवम्बर १९४७ को जूनागढ़ पहुंच गए और भारतीय सेना को इस क्षेत्र में स्थिरता बहाल करने का निर्देश दिया,और सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा। इस हेतु सरदार पटेल,के.एस. मुंशी और कांग्रेस के दूसरे नेता इस प्रस्ताव को लेकर गांधी जी के पास पहुंचे। गांधी जी ने इस फैसले का स्वागत किया और सुझाव दिया कि इस कार्य के लिए सरकारी धन का उपयोग न किया जाए बल्कि आम जनता के दान से प्राप्त धनराशि से इस कार्य को सम्पन्न किया जाए।
#बहुमुखी व्यक्तित्व-
सरदार बल्लभ भाई पटेल एक लोकप्रिय नेता व भारतीय राजनीति के कुशल अधिवक्ता थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक पिता के रूप में रहे,जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और देश की एकता का मार्गदर्शन किया। स्वतंत्र भारत के लिए एकीकरण का मार्ग प्रशस्त किया। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों के भू-राजनीतिक एकीकरण में केन्द्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का ‘विस्मार्क’ और ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है। सरदार पटेल चम्पारण सत्याग्रह से प्रभावित थे। १९१८ में गुजरात में खेड़ा खंड में सूखा पड़ गया था। किसानों ने ब्रिटिश सरकार से कर से राहत की मांग की थी। गांधी जी ने यह मुद्दा उठाकर किसानों की बात को आगे बढ़ाया,परंतु उनके पास उस आंदोलन को सहयोग देने के लिए समय उपलब्ध नहीं था। अतः उन्होंने कुशल नेतृत्व करने वाले सरदार पटेल को यह जिम्मेदारी सौंपी। सरदार पटेल ने आगे आकर इस आंदोलन का नेतृत्व किया और ब्रिटिश सरकार को कर माफी के लिए झुकाया।
#राष्ट्रीय एकता में पटेल का योगदान-
सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद रियासतों में बंटे हुए भारत की छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण कराया। उन्होंने ५ जुलाई १९४७ को ‘रियासत विभाग’ की स्थापना की। इन रियासतों में हैदराबाद,जूनागढ़ और जम्मू कश्मीर के नवाब पाकिस्तान में मिलना चाहते थे,जिन्होंने सरदार पटेल की विलीनीकरण नीति का विरोध था,किंतु सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से हैदराबाद,जूनागढ़ को भारत में मिला लिया। इसके लिए हैदराबाद ऑपरेशन पोलो के लिए उनको सेना भेजनी पड़ी। सरदार बल्लभ भाई पटेल ने गृह मंत्रालय, सूचना मंत्रालय,रियासत मंत्रालय संभाला और पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उप-प्रधानमंत्री के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १५ दिसम्बर १९५० को दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में इनका देहावसान हो गया। ४१ वर्ष बाद १९९१ में सरदार वल्लभ भाई पटेल को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
#प्रतिमा का अनावरण-
तात्कालिक मुख्यमंत्री(गुजरात)नरेंद्र मोदी द्वारा ३१ अक्टूबर २०१३ को सरदार वल्लभ भाई पटेल की १३८वीं वर्षगांठ पर उनकी प्रतिमा ‘स्टैचू ऑफ इंडिया’ की आधारशिला रखी गई,जो विश्व की वर्तमान में १८२ मीटर (५९१ फुट ऊँची) ऊंची सबसे बड़ी प्रतिमा है। इसका वजन १७ टन है। ३१ अक्टूबर २०१८ को सरदार पटेल की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सबसे ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि “कौटिल्य की कूटनीति और शिवाजी के शौर्य के समावेश थे सरदार पटेल जी।” यह प्रतिमा नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध से ३.५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह राष्ट्रीय एकता और गौरव का प्रतीक है। इस प्रतिमा को बनाने में २९८९ करोड़ रुपए का व्यय हुआ है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल को कुशल नेतृत्व,आदर्श व्यक्तित्व,शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता,दृढ़ प्रतिज्ञ व ‘लौह पुरुष’ के नाम से बहुत सम्मान से याद किया जाता रहेगा। भारत का इतिहास हमेशा इस महान साहसी, निर्भय,दबंग,अनुशासित और सत्यनिष्ठ महान पुरुष को याद करेगा। उनके इस जन्म दिवस को इसीलिए ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

परिचय-डॉ.धाराबल्लभ पांडेय का साहित्यिक उपनाम-आलोक है। १५ फरवरी १९५८ को जिला अल्मोड़ा के ग्राम करगीना में आप जन्में हैं। वर्तमान में मकड़ी(अल्मोड़ा, उत्तराखंड) आपका बसेरा है। हिंदी एवं संस्कृत सहित सामान्य ज्ञान पंजाबी और उर्दू भाषा का भी रखने वाले डॉ.पांडेय की शिक्षा- स्नातकोत्तर(हिंदी एवं संस्कृत) तथा पीएचडी (संस्कृत)है। कार्यक्षेत्र-अध्यापन (सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि में आप विभिन्न राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्यों में सक्रियता से बराबर सहयोग करते हैं। लेखन विधा-गीत, लेख,निबंध,उपन्यास,कहानी एवं कविता है। प्रकाशन में आपके नाम-पावन राखी,ज्योति निबंधमाला,सुमधुर गीत मंजरी,बाल गीत माधुरी,विनसर चालीसा,अंत्याक्षरी दिग्दर्शन और अभिनव चिंतन सहित बांग्ला व शक संवत् का संयुक्त कैलेंडर है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बहुत से लेख और निबंध सहित आपकी विविध रचनाएं प्रकाशित हैं,तो आकाशवाणी अल्मोड़ा से भी विभिन्न व्याख्यान एवं काव्य पाठ प्रसारित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न पुरस्कार व सम्मान,दक्षता पुरस्कार,राधाकृष्णन पुरस्कार,राज्य उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार और प्रतिभा सम्मान आपने हासिल किया है। ब्लॉग पर भी अपनी बात लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-हिंदी साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न सम्मान एवं प्रशस्ति-पत्र है। ‘आलोक’ की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा विकास एवं सामाजिक व्यवस्थाओं पर समीक्षात्मक अभिव्यक्ति करना है। पसंदीदा हिंदी लेखक-सुमित्रानंदन पंत,महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,कबीर दास आदि हैं। प्रेरणापुंज-माता-पिता,गुरुदेव एवं संपर्क में आए विभिन्न महापुरुष हैं। विशेषज्ञता-हिंदी लेखन, देशप्रेम के लयात्मक गीत है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विकास ही हमारे देश का गौरव है,जो हिंदी भाषा के विकास से ही संभव है।”

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