डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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अस्तित्व बनाम नारी (महिला दिवस विशेष)…
अबला नहीं हम सबला हैं,
क्यों छोटी सोंच तुम्हारी है ?
राधे-श्याम और सीता-राम,
सदियों से आगे नारी है।
माँ बहन और बेटी देखो,
भार्या भी बनी सहचारी है
चल ना सकोगे दो कदम
ये अपनी भी लाचारी है।
मकान को हम घर बनाएं,
फिर भी अपनी कदर नहीं
एक-दूजे के पूरक हैं हम,
घर की जरूरत, शौक नहीं।
त्याग हमारा और नम्रता को,
निर्बलता को क्यों समझा है ?
फल से तरूवर झुक जाते हैं,
हमने भी झुकना सीखा है।
हाथ हमारे हाथ में ले लो,
क्यों कमतर हमको आंका है !
जिस राह चलें, उस राह पर,
पाओगे सुख-दुःख बांटा है।
अपने मन की ठान लें अगर,
तो हम भी सब पर भारी हैं
प्यार के बदले, प्यार मिले,
वरना तलवार दुधारी हैं।
जो भी चाहे, हमसे ले लो
हम सुख-दु:ख के व्यापारी हैं
कमलिनी सी कोमलता और,
सृजन के भी अधिकारी हैं।
सोंच और मानसिकता बदलो,
वक्त ने रंगत पाई है
जहां-जहां तुम जा पहुँचे,
हमने भी सेंध लगाई है।
हर जगह वर्चस्व ढूँढते हो,
माना वर्चस्व तुम्हारा है।
लो हार कर भी जीत गई,
क्योंकि, नारी बिना अधूरा है॥