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गाता है मधुमास सुहाना

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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आया मनभावन बसंत…

ओढ़े पीली चादर धरती,
लगता ज्यों नव वधु का आना।
स्वागत करती मधुर कोकिला,
गाता है मधुमास सुहाना॥

अवतरित हुई मात शारदे,
करने जगत में ज्ञान प्रसार।
बैठे मधुप पुष्प के ऊपर,
लेने को नव मधु रस सार॥
जोर शीत का मंद पड़ा अब,
अच्छा लगता अब अलसाना।
स्वागत करती मधुर कोकिला,
गाता है मधुमास सुहाना…॥

कामदेव के पंच बाण अब,
बिना दिखे करते हैं प्रहार।
बौराए अब आम वृक्ष भी,
अब तक झेल रहे जो मार॥
धूप लगे अब अलसाई-सी,
है बसंत का ये अफसाना।
स्वागत करती मधुर कोकिला,
गाता है मधुमास सुहाना…॥

हरियाली छाई वसुधा पर,
सभी जीव अब मस्त मगन हैं।
ऐसे में पिय याद सताए,
हिय में जैसे लगी अगन है॥
कोयल गीत प्रीत के गाती,
कैसे गाएं प्रेम तराना।
स्वागत करती मधुर कोकिला,
गाता है मधुमास सुहाना…॥

महक उठा है रूप धरा का,
जनमानस भी सब हर्षाया।
पतझड़ बीत चला है अब तो,
देखो ये कुसुमाकर आया॥
समय समय पर रूप बदलता,
चला पुराना नव का आना।
स्वागत करती मधुर कोकिला,
गाता है मधुमास सुहाना…॥

वसुधा भी रंगीन हुई अब,
कण-कण में यौवन छाया है।
कलरव करते विहग वृंद सब,
सबको ये मौसम भाया है॥
तितली फूल-फूल पर जाती,
गुन-गुन भ्रमर सुनाते गाना।
स्वागत करती मधुर कोकिला,
गाता है मधुमास सुहाना…॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’