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‘गुरु’ नहीं, तो जीवन शुरू नहीं

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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गुरु पूर्णिमा विशेष…

‘गुरु पूर्णिमा’ के दिन को जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा को लेकर यह मत प्रचलित है कि, इसी दिन जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने गांधार राज्य के गौतम स्वामी को अपना प्रथम शिष्य बनाया था।
‘‘शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवों नहीं सर्वत्र, चन्दनं न वने वने॥’’
यानि हर पर्वत पर माणिक नहीं होते हैं, हर हाथी के मस्तिष्क पर मोती नहीं होता है, हर वन में चन्दन वृक्ष नहीं मिलता है। तद्वत् हर जगह में सज्जन-साधु पुरूष नहीं मिलता है, भाग्य से मिले तो मत छोड़ना।
गुरु के सम्मान में हर साल आषाढ़ पूर्णिमा पर गुरु पर्व मनाया जाता है, इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं। ये गुरु के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन होता है, क्योंकि गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और वे ही जीवन को ऊर्जामय बनाते हैं। गुरु के बिना ज्ञान और मोक्ष दोनों ही प्राप्त करना असंभव है।
गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। आदिगुरु परमेश्वर शिव ने दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि-मुनि को शिष्य के रूप शिवज्ञान प्रदान किया था। उनका स्मरण रखते हुए गुरु पूर्णिमा मनाया जाती है। पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है, जो कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह पर्व अपने आध्यात्मिक शिक्षकों-अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र को सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया। ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेद व्यास के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है।
जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ बताया गया है-अंधकार या मूल अज्ञान और ‘रु’ का का अर्थ है-उसका निरोधक। गुरु इसलिए कहा जाता है कि, वह अज्ञान-तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है-
“अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया,
चकच्छू: मिलिटम येन तस्मै श्री गुरुवै नमः।”
गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि, जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी, बल्कि सद्गुरु की कृपा से तो ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अलावा जैन आचार्य, मुनिश्री, आर्यिकाएं, ऐलक, छुल्लक आदि गुरु प्रतीक हैं। उनकी पूजन-अर्चना कर उनसे आर्शीवाद लेकर अपने को धन्य मानते हैं और इस पुण्य पर्व में कम से कम १ वर्ष या आजीवन कोई भी नियम का पालन करने की प्रतिज्ञा लेते हैं या लेना चाहिए, वही सही गुरु दक्षिणा मानी जाती है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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