तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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पद को पूजे, मद में झूमे
मौज-मस्ती में हरदम घूमे,
मतलब से ये करें प्यार है…
चमत्कार को नमस्कार है।
रिश्वत की रोटी खाते हैं
गरज़ पड़े तो झुक जाते हैं,
धरती पर ये बने भार है…
चमत्कार को नमस्कार है।
मुँह में राम बग़ल में छुरी
छल-कपट है, नहीं सबूरी,
मन में इनके भरा खार है…
चमत्कार को नमस्कार है।
गधे को बाप बनाले अपना
करना पड़े जो पूरा सपना,
बातों में नहीं इनके सार है…
चमत्कार को नमस्कार है।
बिन पेंदे के बने हैं लोटे,
नाम बड़े और दर्शन छोटे।
हवा के घोड़े पे रहते सवार हैं…
चमत्कार को नमस्कार है॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।