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चाँद पर पहली बार पड़े कदम,अब क्या बनाना चाहते हैं ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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उस महान क्षण की ऐतिहासिक अनुभूति को आज आधी सदी पूरी हो चुकी है,जब २० जुलाई १९६९ को मनुष्य ने चमकते चाँद पर अपना कदम रखा था। सारी दुनिया रातभर जागकर उस लम्हे की साक्षी बनी थी,जब कमांडर नील आर्म स्ट्रांग ने अंतरिक्ष यात्री के बाने में चाँद की खुरदुरी सतह को स्पर्श किया और अभिभूत हो उठे। उनके शब्द थे-यह मनुष्य का छोटा कदम,लेकिन मानवता की लंबी छलांग है। आज प्रौद्योगिकी और संचार तकनीकों के मायाजाल में डूबी नई पीढ़ी को मनुष्य के चाँद पर पहुंचने और चाँद की असलियत को जान लेने की उस महान उपलब्धि और रोमांच का अहसास शायद न हो,क्योंकि अब तो चाँद भी एक महंगे पिकनिक स्थल में तब्दील होने वाला है। नासा की कोशिश है कि २०२८ तक लोग चाँद पर जाकर तफरीह करने लगें। फिर चाहे चाँद इस बारे में कुछ भी सोचें।

मनुष्य की अदम्य आकांक्षा,भोग वृत्ति और प्रौद्यो‍गिकी मिलकर चाँद को नया ट्रीटमेंट देने वाले हैं। धरती के उपग्रह के रूप में तो चाँद का वजूद साढ़े चार अरब सालों से है। सौर मंडल में सूर्य के बाद चाँद ही वह उपग्रह है,जो अपने सौंदर्य, चमक,और शीतलता के कारण मानव सभ्यता और संस्कृति के साथ हिल-मिल गया है। यह चाँद ही है जो महबूबा के चेहरे से लेकर माँ की लोरी तक सदियों से हमारे साथ रहा हैl चाँद,जिसे खुली आँखों से देर तक देखा जा सकता है। चाँद,जो रात का हमसफर है। चाँद,जिसने धरती पर हावी होने की कभी कोशिश नहीं की। चाँद,जो भीतर से कैसा भी हो,तासीर में दोस्त की मानिंद रहा है। वह कवियों का प्रिय‍ बिम्ब,उपमान और प्रेरणा रहा है,तो हमारे पुराणों,मिथकों में तो वह एक पात्र के रूप में है। पुराणों में चाँद का डेरा भगवान शिव की जटाओं के बीच है,जबकि प्रेमियों ने अक्सर चाँद की गवाही में प्रेम का आदान-प्रदान किया है। इतना सब होते हुए भी चाँद एक ‘दूर का ढोल’ ही रहा। शायद कोई उसके भीतर झांक कर देखना भी नहीं चाहता था,क्योंकि ऐसा करने से चाँद की छवि को लेकर मोहभंग का खतरा था,लेकिन खतरा न उठाए,वह इंसान ही क्या। वैज्ञानिकों में चाँद को एक आकाशीय पिंड के रूप में जानने-समझने की होड़ पिछली सदी में १९५९ में शुरू हुई,जब सोवियत रूस ने अपना अंतरिक्ष यान लूना-२ चाँद पर भेजा। इसके बाद सोवियत रूस और अमेरिका के बीच जो अंतरिक्ष होड़ शुरू हुई,उसी का सकारात्मक परिणाम अमेरिका का अपोलो-११ मिशन था। तब पूरी दुनिया में गजब उत्साह था कि,क्या जिस चाँद को हजारों-बरसों से देखते,सराहते और कोसते आ रहे हैं,उस पर इंसान के कदम पड़ेंगे ? पड़ेंगे तो कैसा महसूस होगा ? क्या चाँद भी धरती जैसा नरम-गरम है ? नहीं है तो कैसा है ? इन तमाम सवालों के आंशिक जवाब नील आर्म स्ट्रांग ने २० जुलाई १९६९ की रात २०:१७ बजे(समन्वित वैश्विक समय के अनुसार)अपने कदम चाँद की धरती पर रखकर दिए। इसके ठीक ३९ मिनट बाद उनके सह यात्री बज एल्ड्रिन ने भी चाँद पर चहलकदमी की। दुनिया को लगा कि,चाँद अब उसकी मुठ्टी में है।

नील आर्म स्ट्रांग के बाद १० और अं‍तरिक्ष यात्री चांद की सैर कर आए हैं,लेकिन १९७२ के बाद से यह सिलसिला थम-सा गया है। उसके बाद भी चाँद पर मिशन तो जारी रहे,लेकिन कोई मनुष्य इसमें नहीं गया। शायद इसलिए कि चाँद को लेकर हमारी कवि और पौराणिक कल्पनाओं को पहली बार तगड़ा झटका लगा,और इसलिए भी कि अब तकनीकी का इतना ‍विकास हो गया है कि,हम अंतरिक्ष की बातों को यहां बैठकर ही जान लेते हैं। या यूँ कहें कि,अगर पृथ्‍वी पर आपका कोई डाटा सुरक्षित नहीं है तो अंतरिक्ष पिंडों की बहुत से जानकारियां भी अब रहस्य नहीं रह गई हैं। विज्ञान तो पहले ही चाँद को आकाशीय पिंड की तरह देख और समझने की कोशिश कर रहा था। अब तक हुए चाँद मिशनों की उल्लेखनीय उपलब्धियों में हमारे चंद्रयान-१ द्वारा चाँद पर पानी की भाप की खोज और चीन के चेंग-२ ‍मिशन द्वारा चाँद के उस हिस्से की खोज है,जहां अभी तक कोई अंतरिक्ष यान नहीं गया था। हमारा चंद्रयान-२ मिशन भी चाँद के उस भाग में उतरने वाला है,जहां केवल भयानक गड्ढे हैं। यानी चाँद की बनावट और तासीर के बारे में कुछ और जान‍कारियां हासिल होंगी।

यह सही है कि,सौर मंडल के अन्य ग्रहों जैसे बृहस्पति और मंगल के बारे में जानने-बूझने की जिज्ञासा के मुकाबले चाँद के बारे में हमारी उत्कंठा हमेशा ज्यादा और बहुआयामी रही है, क्योंकि चाँद हमारी खयाली दुनिया पर अभी भी उतना ही छाया हुआ है,जितना कि वह २० जुलाई १९६९ के पहले था। बावजूद इसके कि चाँद अपने-आपमें निर्जन,नीरव है,वहां प्राणवायु भी नहीं है। चाँद पर ऋतुएं नहीं होतीं। वहां पशु-पक्षी और पेड़-पौधे भी नहीं है। एक भयावह सन्नाटा और जानलेवा एकांत है।(भले ही नील आर्म स्ट्रांग को चाँद की सतह के उस भूरेपन में भी एक अलग तरह की रागात्मकता महसूस हुई हो)। विशाल मुर्दा ज्वालामुखी हैं। सदियों से खामोश पड़े पत्थर,चट्टानें और धूल है। वहां कोई गीत,कविता या जीवन का क्रंदन नहीं है। इन सबके बाद भी चाँद हमारे लिए चाँद क्यों है ? उधारी की चमक के बावजूद वह हमे ‘मामा’ जैसा ‘स्नेहिल’ क्यों लगता है ? इन सवालों के सही जवाब आने में अभी हजार साल और लग सकते हैं।

बहरहाल,चाँद पर,चाँद को लेकर जो अब हो रहा है,वह गुजरे जमाने की अन्तरिक्ष गति(स्पेस रेस) से बहुत जुदा और ज्यादा चिंताजनक है। नील आर्म स्ट्रांग ने तो चाँद पर जाकर वहां के वातायन(वो जैसा भी है)से आँखें चार की थीं,लेकिन अब चाँद को लेकर जो सोचा जा रहा है,वह रोमांचक पर्यटन (एडवेंचर टूरिज्म)की शक्ल में हैl यहां चाँद देवता या प्रेम संदेश वाहक न होकर एक मनोरंजक मंच(एंटरटेनमेंट प्लेटफार्म)बनने जा रहा है। पचास बरस पहले चाँद पर इंसान के जाने पीछे एक उम्मीद यह भी थी कि,अगर वहां धरती जैसा माहौल और दाना-पानी मिल जाए तो उस अभागे चाँद को भी हम धरती में बदल दें,लेकिन अफसोस कि विज्ञान की खोजबीन में जो राज उजागर हुए हैं,उनसे चाँद को जीतने और उसे अपना दूसरा ठिकाना बनाने की आसुरी आंकांक्षाओं पर जरूर विराम लग गया है,लेकिन फिर भी वह पर्यटक मंजिल(टूरिस्ट डेस्टिनेशन) बनने से नहीं बच पा रहा है। नासा ने इसकी तैयारियां कर ली हैं। इसके तहत अमीरों से मोटी रकम लेकर लोगो को चाँद की सैर कराई जाएगी। वहां आने-जाने के‍ लिए २०२४ तक अंतरिक्ष में एक प्लेटफार्म बनेगा। यात्री इसी प्लेटफार्म से होकर चाँद पर जाएंगे और लौटेंगे। जिस यान के जरिए यह सब होगा,उसे ‘एट्रिमस’ नाम दिया गया है।

हाँ,हैरानी की बात यह है कि चाँद जिनके सपनों और जज्बातों का हमसफर रहा है,उन महिलाओं में से कोई भी अब तक असली चाँद के सफर पर नहीं गया है। प्रेयसी की तुलना चाँद से करने वाले पुरूष यहां भी ‘स्वार्थी’ ही साबित हुए हैं। वो ‘चाँद’ तो चाहते हैं,पर ‘चाँद’ को चाँद पर जाने नहीं देना चाहते। असल चाँद पर कोई महिला कब जाएगी,यह अभी भी तय नहीं है,हालांकि अपोलो-११ मिशन के संयोजन में महिलाओं की बड़ी भूमिका थी।

ध्यान रहे कि मनुष्य जब पहली बार चाँद पर पहुंचा था,तब इंटरनेट नहीं था। तब दुनिया कल्पना से भरी लेकिन वास्तविक दुनिया में ही जी रही थी। इसीलिए,नील आर्म स्ट्रांग के कदम को विश्व के हर व्यक्ति ने अपना कदम ही समझा। अब लोग चाँद पर पिकनिक के लिए जाना चाहते हैं। भले ही चाँद ‘टूटा हुआ तारा’ बन जाए। यह बात चाँद को भी समझनी होगी। शायद इसीलिए,शायर इब्ने सफी ने लिखा था ‘चाँद का हुस्न भी जमीन से है,चाँद पर चाँदनी नहीं होती…!’

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