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चिरागों का समन्दर

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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उतर रही है स्वर्ण किरणें,
आसमां थम सा गया है
खोल दिया है रजनी ने पट,
सितारों ने रंग घोल दिया है।

ढूंढ रहीं हैं थकी-सी निगाहें,
प्रियतम जाने कहां छिपा है
बढ़ रहा अब मर्म स्पंदन,
दिल बावरा मचल गया है।

कब उतरेगा चाँद जमीं पर,
आसमां बिखर-सा गया है
मुहब्बत का सौदा हुआ था,
प्रियतम बदल-सा गया है।

सड़कें हो गई है सूनी-सूनी,
मातम-सा क्यों पसर गया है
तुम्हारे नाम का सुकून अब,
जमीं पर कहीं खो-सा गया है।

उड़ने लगे हैं रातों में परिंदे,
मंजर भी अब बदल गया है।
क्यों चिरागों का समन्दर,
धीरे-धीरे बुझ-सा गया है॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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