राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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बेगानों की बस्ती में मेरे दिल कब तलक रहिये।
न ये कहिये,न वो कहिये,छुपाते कब तलक रहिये।
दिखायेंं किसको जख्मे-दिल,सुनायेंं किसको हाले-गम,
न ये सुनते,न वो सुनते,सुनाते कब तलक रहिये।
वो करके कैद मुझसे पूंछते हैं, “खुश तो हो जानम”,
ऐसे दिलबर को दर्दे-दिल दिखाते कब तलक रहिये।
वफा के नाम पे यहां संग की ऊँँची दीवारें हैं,
वो संग-दिल,मैं शीशे- दिल,निभाते कब तलक रहिये।
वो बन के दोस्त मुझसे कर रहे हैं दुशमनी या रब,
जो ना कहिये तो क्या कहिये,समझाते कब तलक रहिये।
यहां हम जी रहे हैं,इससे बेहतर और भी जहां हैं,
चलेंगे तुमको लेकर हम,बहलाते कब तलक रहिये।
मैं खुद की तोड़ जंजीरेंं,अब बाहर निकलूँगी,
खुले हैं होंठ मेरे,चुप लगाते कब तलक रहिये॥
परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।