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चूं चूं का चुनावी भूत

सुनील जैन राही
पालम गांव(नई दिल्ली)

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जवानी में नींद नहीं खुलती और बुढ़ापे नींद आती नहीं। जवानी में जॉगिंग जी का जंजाल लगती है,तो बढ़ापे में जीवन का सार। जवानी में हर काम कर लेंगे की भावना से छोड़ते चले जाते हैं और बुढ़ापे में अभी कर लो कल रहे या नहीं रहें। खैर,इसका मतलब भी नहीं जवानी सोते हुए गुजार दो और जवानी में तीन बजे जॉगिंग के लिए पार्क में पहुंच जाओ। चच्चा को बुढ़ापे में जवान दिखने के शौक ने सुबह तीन बजे पार्क में पहुंचा दिया। पार्क में पहुंचे और वापस घर की और भाग लिए। जब अलसुबह चच्चा पार्क में नहीं दिखाई दिए तो झम्मन को चिंता हुई कि कहीं चच्चा चुनाव से पहले ही खुदा की खिदमत के लिए ऊपर तो नहीं निकल लिए। यही खयाल आते ही चच्चा के घर की ओर दौड़ पड़े।
दरवाजा खटखटाया तो देखा सामने चच्चा खड़े हैं। चेहरे पर हवाई उड़ी हुई हैं। बड़ी मुश्किल से आवाज निकली-आओ झम्मन।
झम्मन-हाँ। आज सुबह आप दिखाई नहीं दिए तो लगा कहीं चुनावी बुखार तो नहीं आ गया।
चच्चा-चुनावी बुखार तो नहीं देखा,हाँ आज सुबह-सुबह भूत के दर्शन हो गए और इसी डर के मारे पार्क का चक्कर नहीं लगा पाए।
झम्मन-अरे चच्चा,इतने बूढ़े हो गए और भूत की बात कर रहे हो।
चच्चा-और क्या,इतना बुडढा आदमी झूठ बोलेगा।
झम्मन-मैं नहीं मानता,चुनावी मौसम में बुखार तो आते देखा है,लेकिन भूत कहां से देख लिया। मुझे तो विश्वास नहीं होता।
चच्चा-अब ऐसा झम्मन,बुडढा जरूर हो गया हूँ लेकिन बुद्धि,आँख,कान और अकल अभी भी काम कर रही है।
झम्मन-अरे,चच्चा आपको अवश्य भ्रम हुआ होगा।
चच्चा-ऐसा है हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या ?
झम्मन-वहां हमेशा मेरे मुहावरों की टांग तोड़ते हो,आज खुद मुहावरा जड़ दिया। अब जल्दी से बताओ,इस मुहावरे की यहां टांग क्यों तोड़ी।
चच्चा-मेरे कहने का मतलब है कि,मेरे साथ पार्क चलो,तुम्हें असली भूत दिखाता हूँ।
झम्मन-इसी हालत में चलोगे,बदन पर कुर्ता डाल लो,नहीं तो चुनावी मौसम में चुनावी कुत्ते रौंद डालेंगे।
चच्चा-हाँ,ये बात तो सही है। चुनावी बुखार,चुनावी कुत्ते,चुनावी दलाल से बच पाएं तो वोट डाल पाएं। लो चलो।
पार्क में पहुंचते ही झम्मन ने चच्चा को आड़े हाथ लिया और बोले-
झम्मन-पार्क में कहां भूत दिखाई दे रहे हैं।
चच्चा-इसीलिए तो,मैं कह रहा था कि चुनावी मौसम में चुनावी बुखार से ज्‍यादा खतरनाक होते हैं-चुनावी भूत।
झम्मन-मैं कुछ समझा नहीं।
चच्चा-झम्मन,सर ऊंचा करो और देखों पार्क को चारों ओर से भूतों ने घेर रखा है।
झम्मन-अरे चच्चा। बुढ़ापे से पहले ही सठिया गये। अच्छे-खासे पोस्टरों को भूत कह रहे हो।
चच्चा-क्या भूत इतने बड़े नहीं होते।
झम्मन-भूत तो बड़ा और छोटा हो सकता है,लेकिन ये तो पोस्टर हैं।
चच्चा-बेटा झम्मन यही भूत हैं। वो देखो गरीबी का भूत कितने सालों से हमें डरा रहा है,वह महंगाई का भूत,विकास का भूत,जातिवाद का भूत, धर्म निरपेक्षता का भूत,साम्प्रदायिकता का भूत और सबसे बड़ा भूत पाकिस्तान का। इन भूतों के डर से ही सुबह एक भी चक्कर नहीं लगा पाया।
झम्मन-अरे चच्चा,ये चुनावी मुद्दे हैं। ये भूत नहीं हैं।
चच्चा-बेटा इस बुढ़ायी जिन्दगी को सिखा रहे हो। पूरी जिन्दगी निकल गई इन भूतों के भय से पार्टियों को वोट देते-देते। आज तक तो कोई ऐसी पार्टी आई नहीं,जिसने इन भूतों को भगाने का प्रयास किया हो।
झम्मन-आप तो बड़े सीरियस हो गए चच्चा।
चच्चा-हर पांच साल में भूत दिखाई देते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। इन भूतों के डर से पोलिंग बूथ जाते हैं और आते ही घर में दुबक जाते हैं।
झम्मन-तो अब क्या होगा ?
चच्चा-अब होगा क्या,कोई नया भूत खड़ा हो जाएगा और उसे भगाने के बहाने कोई ओझा या तांत्रिक आ जाएगा,हम उसे वोट दे देंगे। इस बार देखना है किस तांत्रिक की सरकार आएगी। चलो अब एक चक्कर लगा लो।

परिचय-आपका जन्म स्थान पाढ़म(जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद)तथा जन्म तारीख २९ सितम्बर है।सुनील जैन का उपनाम `राही` है,और हिन्दी सहित मराठी,गुजराती(कार्यसाधक ज्ञान)भाषा भी जानते हैं।बी.कॉम.की शिक्षा खरगोन(मध्यप्रदेश)से तथा एम.ए.(हिन्दी,मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया है। पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन खाते में-व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी है।आपकी कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में लेखनी का प्रकाशन होने के साथ आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हो चुका है। राही ने बाबा साहेब आम्बेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया है। मराठी के दो धारावाहिकों सहित करीब १२ आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैं। इतना ही नहीं,रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ४५ से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वविद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैं। कुछ अखबारों में नियमित व्यंग्य लेखन करते हैं। एक व्यंग्य संग्रह अभी प्रकाशनाधीन हैl नई दिल्ली प्रदेश के निवासी श्री जैन सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रीय है| व्यंग्य प्रमुख है,जबकि बाल कहानियां और कविताएं भी लिखते हैंl आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंl आपकी लेखनी का उद्देश्य-पीड़ा देखना,महसूस करना और व्यक्त कर देना है।

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