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जहाँ प्याज २५० ₹ किलो, वो दे रहे हमले की धमकी

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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जिस देश में २५० रुपए किलो (भारत में १० से ३० रुपए अधिकतम) प्याज हो, ३ साल में प्रधानमंत्री बदल जाता हो, लगातार राजनीतिक अस्थिरता हो, कोई देश कर्ज नहीं देता हो, सेना पर सत्ता का नियंत्रण नहीं हो, हर क्षेत्र में महंगाई हो, किसी भी देश को विश्वास नहीं हो, आम जन-जीवन खराब हो, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत बार अपमान हो चुका हो और आतंकवाद फैलाने को लेकर हर मंच-देश फटकार चुका हो, वो सत्ता का भूखा और त्रस्त देश खुद सुधरने की अपेक्षा वैश्विक मंच पर स्थापित सर्वप्रिय देश भारत को परमाणु बम के हमले की धमकी दे, तो तरस पहले आता है, हँसी बाद में। अनेक समस्याओं में आमजन को झोंक चुकी पाकिस्तानी सत्ता का यह खेल बर्बादी की राह पर निरन्तर जारी है तो इसके विपरीत भारत सतत शक्ति सम्पन्न होकर प्रगति पथ पर अग्रसर है। ‘नापाक’ इरादों पर ही चलते आ रहे पाक के ताजे-ताजे विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जो स्तरहीन टिप्पणी की है, उसके बाद भारत सरकार के कड़े जवाब से भन्नाई पाक सरकार की मंत्री शाजिया जन्नत मर्री ने परमाणु बम के हमले की बात कहकर खुद की इज्जत और गिराई है। अरे जो देश अपने ही पैदा किए आतंकी और आतंकवाद से ३ दशक में बुरी तरह घिर चुका हो, जिसकी जनता उसे इन हालातों के लिए रोज कोसती हो, जो देश गहरे आर्थिक संकट में डूबा हो, वो परमाणु एवं प्रतिभा सम्पन्न भारत को ऐसी धमकी दे तो इनकी बेशर्मी बनाम मुँहजोरी पर अचरज होता है और गुस्सा भी आता है। कहना गलत नहीं होगा कि, पाकिस्तान आज बर्बादी के उस मुहाने पर है, जहां से लौटना बेहद कठिन है। आतंक और इस्लामी कट्टरता को ही जीवन धर्म मान चुके पाकिस्तान के इसी वजह से पड़ोसी देशों से रिश्ते बिगड़े हुए हैं। इसके बाद भी इस देश में सरकार की नीति और नीयत में बदलाव नहीं आने से आज ऎसी हालत हो गई है कि इन्हें कोई देश गंभीरता से लेता नहीं और जनता बुरी तरह से परेशान है। भारत से अनेक बार पराक्रम और योग्यता में परास्त हो चुके पाकिस्तान को अब और क्या सबक सीखना रह गया है, उसकी समझ से परे है। आज पूरे विश्व को फिर देखना चाहिए कि अहसान फरामोशी भी इस पाकिस्तान का प्रिय गहना है। भारत ने पड़ोसीपना निभाते हुए हर बार दुःख-विपत्ति के समय इनकी यथासंभव मदद की है, यहाँ तक कि वैश्विक महामारी ‘कोरोना’ के समय भी काफी मदद की, पर इनके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया है। भारत के प्रति जहरीला रवैया अब भी जारी है।
एक राष्ट्र के विदेश मंत्रालय और मंत्री को कितना गंभीर होना चाहिए, ये समझने में पाकिस्तान सरकार को अभी ७ जन्म और लेने पड़ेंगे, क्योंकि इनकी बुद्धि तो बची नहीं है, उल्टे बयान देकर अपनी भद पिटवा रहे हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि पाक सरकार और उसके कर्ता-धर्ता गम्भीरता के नाम पर आज भी खाली बर्तन जैसे हैं। सभी देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाना और निभाना तो दूर, जो थोड़े से बचे हैं, उनको भी यह तोड़कर ही मानेंगे।
युवा बिलावल भुट्टो ज़रदारी इसी साल अप्रैल में पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद विदेश मंत्री बने हैं, और अनुभवहीन हैं। दरअसल, इनसे अच्छे की अपेक्षा करनी बेकार ही है क्योंकि २००७ में माँ बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद बिलावल भुट्टो को पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। उस वक्त बिलावल महज़ १९ साल के और अनुभव रहित थे। चाहते तो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षित हुए बिलावल भुट्टो इतने राजनीतिक उतार-चढ़ाव में कब बोलना और कितना-क्या बोलना सीख सकते थे, पर ऐसा हुआ नहीं है।
पाक के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी के बेटे होकर भी बिलावल इतना नहीं समझे कि विदेश मंत्री के बयान से दो देशों के बीच क्या-क्या हो जाता है, तो आगे क्या कहा जाए। इनकी शर्मनाक टिप्पणी से साबित हो गया है कि, खुद को अंतरराष्ट्रीय नेता बनाने की बेकार कोशिश में लगे बिलावल भुट्टो के पास कूटनीतिक मामलों में कोई अनुभव नहीं और अच्छे सलाहकार भी नहीं है। दूसरी बात यह भी इनके प्रति पाक मीडिया और नेताओं का अनुमान अब सही निकला है। जब शहबाज़ शरीफ़ की सरकार में बिलावल भुट्टो को विदेश मंत्रालय दिया गया, तब कहा जा रहा था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में सबसे मुश्किल दौर में है, विदेश मंत्रालय की बागडोर ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौंप दी गई है, जिनके पास कोई अनुभव नहीं है। तब बिलावल भुट्टो को विदेश मंत्री बनाए जाने पर पाकिस्तानी अख़बार ‘द डॉन’ ने लिखा था, “क्या युवा बिलावल पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वह मुकाम दिला पाएंगे, जिसकी अभी सख़्त ज़रूरत है ?”
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को आतंकवाद का ‘एपिसेंटर’ बताने पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल ज़रदारी भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक विवादित बयान दिया, जिसमें प्रधानमंत्री का नाम सीधे-सीधे तो नहीं लिया, पर गुजरात में हुए दंगों का हवाला देकर उन पर टिप्पणी की। एक राष्ट्रीय नेता से इस तरह के मामलों में ऐसे दिवालिया बयान की उम्मीद नहीं होती है, लेकिन मानसिक रूप से कंगाल उक्त मंत्री ने स्तरहीन बात करके अपनी अनुभवहीनता और सबकी सोच को सही साबित कर दिया है।
कुल मिलाकर आतंक के गढ़ पाकिस्तान का सुधरना और तरक्की की राह पर चल पाना अब बहुत ही मुश्किल काम है, क्योंकि जब तक इनकी सोच और काम राष्ट्रीय हित के नहीं होंगे, तब तक देश का भला भी नहीं होगा। भले ही कूड़ाघर के दिन १२ बरस में बदल जाते हों पर किसी श्वान की पूँछ जैसे १२ बरस भी पाईप में रखने पर सीधी नहीं होती, वैसी ही स्थिति पाकिस्तान की हो गई है। भारत देश के नेतृत्व को चाहिए कि आगे भी इनसे कोई व्यवहार नहीं किया जाए एवं हर मोर्चे पर इनको कूटनीतिक शिकस्त दी जाती रहे।

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