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जितनी कम, उतनी खुशी

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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आज ज्यों ही रिंकू सारा काम खत्म कर अपने पति (सौरव) के पास आकर बैठी, पहले दफ्तर के अधिकारी का फोन, फिर कर्मचारी का….। यह देख पत्नी झुंझला कर बोली,-“आपको तो जब देखो,…फोन, फोन, काम, काम…. कभी जो २ मिनट खाली मिल जाएं आप! वहीं पड़ोस में धनिया को देखो, रोज ११ बजे तक दोनों की हॅंसी-ठहाके की आवाज आती रहती है, कितना मजा है उनका।”
सौरव सब कुछ सुन मुस्कुरा कर बोला,–“ईर्ष्या हो रही है तुम्हें!”

“….हाँ, होगी नहीं। आपके पास तो मेरे लिए वक्त ही नहीं है।”
“…ऐसा नहीं है, यह भी तो सोचो, उनका दायरा उतना ही है। उनकी हॅंसी-मजाक की चाभी तो मेरे पास है। चाहूँ तो २ दिन में ही उनकी हॅंसी गायब कर दूं।”
रिंकू चुपचाप उदास होकर सो गई। अगले दिन प्रातःकाल सौरव बनिया को बुलाकर बोला-“तुम्हारे नाम पर इंदिरा आवास (सरकारी घर) आया है, लेकिन तुम तो अच्छे खासे पक्के मकान में रहते हो, तुम घर बना कर भी क्या करोगे! ऐसा करो, कल दफ्तर जाकर कागज-पत्र ठीक कर बैंक से पैसे ही निकाल लेना।”
बनिया बहुत खुश हुआ। उसने यह खबर आकर पत्नी धनिया को दी।
इतने में वो बोली,-“चलो कुछ दिन आराम से खाएंगे। अगले दिन प्रातःकाल बनिया काम के लिए निकल ही रहा था, तब तक धनिया ने कह दिया-“सब कुछ तो है घर पर, क्यों काम पर जाना आज ?”
बनिया बोला-“हाँ, वह तो है। छोड़ो कहती हो तो नहीं जाता हूँ।”
दोनों घर पर रहते बनाते-खाते, हॅंसी- मजाक में बिता देते हैं। जैसे-जैसे पैसे खत्म होने लगे, धनिया सोचने लगी, जितना दिन मैं पैसे को बचाकर चला पाऊँगी, उतने दिन काम में नहीं जाना पड़ेगा, दोनों आराम से रहेंगे। धनिया ३ दिन की जगह ५ दिन राशन चलाने के लिए दो वक्त ही भोजन बनाने लगी।
रिंकू बीते दो दिन से गौर कर रही थी। धनिया के घर में इतनी चुप्पी…! अचानक वह आकर सौरव से बोली,-“सचमुच आपमें तो जादू है!”
“…अरे रिंकू, यही सच्चाई है, जिसके पास जितनी अधिक धन, उतनी ही सोच, उतनी ही व्यस्तता।”
अब धनिया को ही देख लो, जब उन्हें कुछ खोने का डर नहीं था कितने निश्चिंत थे। जहां खत्म होने का डर हुआ, वही चिंता बढ़ गई। सचमुच यही तो जीवन की सच्चाई है जितना अधिक धन, उससे कहीं अधिक परेशानी…।”

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