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‘जियो और जीने दो’ के प्रणेता

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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महावीर जयन्ती (४ अप्रैल विशेष)…

वर्तमान में वर्धमान की आवश्यकता है। संभवतः भगवान् महावीर के युग में भी हिंसा का बोलबाला रहा होगा, जिस कारण उन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया।

विश्व ने हमेशा भगवंतों द्वारा स्थापित नियमों का पालन नहीं किया। विश्व में पशु हिंसा और प्रकृति का दोहन होने के कारण मानव जनित रोगों का प्रकोप हुआ और वर्तमान में सब मृत्यु के भय से आतंकित है।
जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मदिवस को महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है। जैन समाज द्वारा पूरे भारत में भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे ‘महावीर जयंती’ मनाई जाती है। इस दिन को महावीर जन्मकल्याणक नाम से चैत्र माह के १३वें दिन यानी चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को दिगंबर और श्वेतांबर जैन एकसाथ मिलकर मनाते हैं।
आज से करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से ५९९वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुंडलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस (त्रयोदशी) को वर्धमान का जन्म हुआ। यही वर्धमान बाद में महावीर स्वामी बना। महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओत-प्रोत था। उन्होंने एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पांति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। इन्होंने ३० वर्ष की उम्र में मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की। महावीर ने इस अवधि में तप, संयम और साम्य भाव की साधना की और पंच (सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, क्षमा) महाव्रतरूपी धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि, इन्द्रियों, विषय-वासनाओं के सुख दूसरों को दुख पहुंचा करके ही पाए जा सकते हैं। अत: उन्होंने सबसे प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनियाभर को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महावीर कहते हैं कि “धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है।” महावीर जी कहते हैं- “जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।”
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर अपना पवित्र संदेश फैलाया। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की कोशिश की। अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- “मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।”
उन्होंने अपने जीवनकाल में अहिंसा का भरपूर विकास किया। विश्व को अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले भगवान महावीर ने ७२ वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि में पावापुरी नगरी में मोक्ष प्राप्त किया। महावीर स्वामी को ‘वर्द्धमान’, ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है।
आज भी कोई विलम्ब नहीं हुआ है, यदि हम अपने जीवन में सप्त व्यसन का त्याग करेंगे तो जीवन सुखद होगा। जुआ खेलना, मांस खाना, मदिरा पान करना, वेश्या सेवन, शिकार करना, चोरी करना और परस्त्री गमन का त्याग करते हुए सम्यक दर्शन, ज्ञान और चरित्र को अपने जीवन में उतारें। जिंतना अधिक हम अपने जीवन में अहिंसा को उतारेंगे, उतनी अधिक सुख-शांति और जीवन सुखद होगा। इन सिद्धांतों को जीवन में उतारना ही सही महावीर जयंती मानी जाएगी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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