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जीवन-मरण

राधा गोयल
नई दिल्ली
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सभी जानते हैं कि जीवन-मरण सृष्टि का शाश्वत क्रम है,
जो आया है वो जाएगा, इसमें नहीं किसी को भ्रम है
किन्तु पुत्र की अर्थी को यदि कंधा देना पड़े पिता को,
छह साल के बच्चे को, जब मुखाग्नि देनी पड़े पिता को
उस परिवार की व्यथा कथा लिखने को शब्द कहाँ से लाऊँ ?
जीवन- मरण शाश्वत है, कह कर कैसे दिल को बहलाऊँ ?

हाय मौत तू कैसे इतनी क्रूर हो गई ?
एक परिवार की खुशियों को क्यों चूर कर गई ?
ऐसे लोग भी हैं जो ईश्वर से मरने की भीख माँगते,
बीमारी से व्यथित हैं इतने, नहीं जगत के किसी काम के
शौच कर्म के लिए भी, जो खुद उठने को लाचार,
सेवा करते करते उनकी, हुए सभी बेजार।

काश मौत आ जाए हमको, कहते बारम्बार,
मौत कहाँ सुन पाती है, उनकी यह आर्त पुकार
सदा रहेगा इस दुनिया में सुख और दु:ख का आना- जाना,
जीवन-मरण का भेद ठीक से, हमने अब तक न पहचाना
माना जीवन-मरण शाश्वत, ये ही है गीता का सार।
इतना ही चाहते हैं, किसी का असमय न उजड़े संसार॥

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