डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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जैसे-जैसे रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का दिन करीब आ रहा था, वैसे-वैसे सारा नगर राममय होता जा रहा था। अभिजीत ने भी अपने पिता की दुकान में पेंटिंग का काम करना छोड़ कर वहीं टैटू बनाने का काम शुरू कर दिया था। उसका काम चल निकला था। काम करते-करते वह सोचता कि, ३ दिन पहले तक तो युवा अस्थाई टैटू गुदवा रहे थे, पर अब ज्यादातर स्थाई ही गुदवाने की मांग करते ? उसकी दुकान चल निकली थी। दूसरों की देखा-देखी उसने भी अपने भाव बढ़ा दिए थे और नया बोर्ड टांग दिया था-
अस्थाई टैटू-₹१२५ प्रति स्क्वायर इंच, स्थाई टैटू-₹ ४०० प्रति स्क्वायर इंच।
टैटू बनाते-बनाते वह सोचता रहता कि, लोग फिजूल में कहते हैं कि युवा बिगड़ रहे हैं! अच्छे युवा भी तो हैं! इतने सारे युवा अपने हाथ और पीठ में श्री राम और अयोध्या का मंदिर गुदवा रहे, सिर्फ इसलिए कि वह राम-सा बनना चाहते हैं… वे राम सा कोई काम करना चाहते हैं! एक दिन उसके मन में विचार आया कि, मैंने रामलला के नाम पर हजारों रुपए कमाए …अभी और भी कमाऊंगा… लेकिन मैंने उन्हें खुश करने के लिए क्या किया ? घर पहुँचने के बाद भी वह इसी सवाल से जूझता रहा। रात को बिस्तर में लेटे-लेटे अचानक उसे उस सवाल से मुक्ति मिल गई। वह उठा और एक बोर्ड में पेंट करने लगा।
दूसरे दिन दुकान खोलते ही उसने अपना वह बोर्ड वहां टांग दिया–रामलला की प्राण- प्रतिष्ठा वाले दिन यहां नि:शुल्क श्री राम का लिखा टैटू बना कर दिया जाएगा।