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तत्पर

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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लगातार बारिश की वजह से दुखिया का घर जलमग्न हो गया था। बारिश का न कमता हुआ देख दुखिया ग्राम पंचायत दफ्तर में मुख्य अधिकारी के पास आई और बोली-“साहब, मेरे घर में बारिश का पानी भर गया है, यदि मुझे कुछ दिनों के लिए रहने का आसरा दे देते तो, आपकी बड़ी कृपा होती।” तब तक सामने बैठा एक कर्मचारी बोल पड़ा-पता नहीं, कहां-कहां से लोग सर उठा कर आ जाते हैं ? ……जानती हो, कितने ही लोगों के घर बाढ़ में डूबे हैं तो क्या हम सभी को आसरा दें ?

दुखिया निराश तो थी, लेकिन चुप रही। ..फिर बोली,-“साहब, मुझे एक सप्ताह रहने का इंतजाम किसी तरह कर दीजिए। मैं आपके घर के कामों में भी हाथ बटा दूंगी।”
अधिकारी स्थिति को समझते हुए उसे घर पर रखने के लिए तैयार हो गए, जिससे उनके घर की साफ-सफाई में मदद भी मिल जाती।
घटना के तीसरे दिन ही साथ का एक कर्मचारी (रॉबिन) अपने बेटे के किडनैप होने की खबर ले मदद की गुहार लगाए मुख्य अधिकारी के पास दौड़ा-दौड़ाआया। उन्होंने सारी बात सुनी। फिर कहा-हमारे यहाँ मुँह उठाकर आने की बजाय यदि तुम थाने जाकर रिपोर्ट करते तो, ज्यादा बेहतर होता।
“ऐसा मत बोलिए, हम गरीब को थाने में जाकर रिपोर्ट लिखाते-लिखाते बहुत विलंब हो जाएगा। मेरी मदद कीजिए साहब।”
….अधिकारी चेहरे पर मुस्कुराहट लाए, फिर बोले,-याद करो तीन दिन पहले दुखिया के आने पर तुमने क्या कहा था…। यह सुन रॉबिन का चेहरा शर्म से झुक गया। अधिकारी फिर उसके साथ चले गए। रास्ते में उन्होंने कहा-जानते हो, मानव एक सामाजिक प्राणी है। हम यहां यदि किसी की मदद कर पाते हैं तो, अपने-आपको सौभाग्यशाली मानना चाहिए कि, हम उस लायक तो हैं कि, किसी के काम आ पा रहे।
रॉबिन शांत मन से सुनता रहा। फिर बोला-“हाँ, आप सही ही कह रहे हैं, इस बात का आज मुझे एहसास हुआ। आगे से मैं ख्याल रखूंगा। आइंदा मेरे सामने से कभी कोई निराश होकर ना जाए…और जरूरतमंदों की मदद के लिए सदा तत्पर रहूंगा…।”

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