नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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ऐसा तो नहीं
तुम करना चाहते थे,
मुझे फोन
मगर नहीं किया फिर,
ये सोचकर
कि मैंने क्यों नहींं किया
तुम्हें फोन ?
ऐसा तो नहीं
तुम आना चाहते थे,
मुझसे मिलने
मगर नहीं आये फिर,
ये सोचकर
कि मैं क्यों नहीं आया,
तुमसे मिलने ?
ऐसा तो नहीं
तुम देना चाहते थे,
मुझे उपहार
मगर नहीं दिया फिर,
ये सोचकर
कि मैंने क्यों नहींं दिया
तुम्हें उपहार ?
सच तो ये है
कि मैं भी सोचता रहा यही,
तुम्हारी तरह।