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तुम सब-कुछ हो

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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तुम सूरज की रोशनी नहीं,
नहीं तुम चंदा की चाँदनी हो
पर तुम मुझे सबसे ज्यादा पसंद हो,
तुम हिमालय से ऊँची नहीं
नहीं तुम सागर से हो गहरी,
पर तुम सबसे ज्यादा बुलंद हो।

गुलाब से ज्यादा कोमल नहीं,
न ही फूल से ज्यादा नरम हो
पर तुझे पाकर तबियत मलंग हो,
रात का सपना नहीं तुम
न ही दिन की कल्पना हो,
जो भी हो, तुम अपनी हो।

भूख के लिए न रोटी हो तुम,
न चौसर की कोई गोटी हो तुम
पर ताजगी के लिए जड़ी-बूटी हो तुम,
खुशबू से ज्यादा चंचल नहीं
हवा में उड़ता तेरा आँचल नहीं
पर दिल में तुम करती हलचल हो।

कोई विश्व सुंदरी नहीं हो तुम,
नहीं कोई अप्सरा हो तुम
पर खूबसूरती की पहचान हो तुम,
आग नहीं हो तुम
न ही गरम चाय हो तुम,
जाड़े के लिए गुनगुनी धूप हो तुम।

सुंदरता का तुम रूप नहीं,
खूबसूरती का खजाना नहीं
पर मेरे लिए तुम सब-कुछ हो,
शायरी-ग़ज़ल नहीं हो तुम।
न ही कोई कविता हो तुम,
मेरे लिए शब्दों का भंडार हो तुम॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।