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तुरपाई

विजयसिंह चौहान
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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तीन बच्चों की माँ चन्दादेवी सुबह से देर रात तक कपड़े की सिलाई कर बमुश्किल दो जून की रोटी कमाती। सुन्नू,काकू और अन्नू यही कुछ नाम थे बच्चों के । सुन्नू के बड़ी बिटिया होने से उसके जिम्मे रसोई में सहयोग तो काकू-अन्नू कपड़े सिलने के बाद काज-बटन और तुरपाई करके सहारा देते हैं माँ को।
खेल-खेल में काम और माँ की सीख आज भी याद आती है बच्चों को। तुरपाई वही जो कपड़े के दो सिरों को जोड़ भी दे और सिलाई नजर भी नहीं आए। सुई-धागे की जुगलबंदी के बीच कई बार सुई गुस्ताखी कर जाती और अगुंली भेद देती। दर्द और रक्त की बूंद के बीच तुरपाई का कमाल होता है,कपड़ों के सिरों को करीने से जोड़ने का।
हाँ,माँ ने ही तो कहा था कि जीवन में रिश्ते निभाने के लिये,सबंध जोड़ने के लिये तुरपाई जैसे महीन प्रयास करना चाहिये और प्रयास इतने महीन कि किसी को पता भी न चले और संबंध मधुर बन जाए। कभी-कभार,दर्द और चुभन हो,तब भी उसे भुलाकर रिश्ते बचा लेना, क्योंकि रिश्ते आकार लेते हैं,छोटे-छोटे महीन, सकारात्मक प्रयास से।

परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० और जन्मस्थान इन्दौर(मध्यप्रदेश) हैl वर्तमान में इन्दौर में ही बसे हुए हैंl इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की,तथा वकालात में कार्यक्षेत्र इन्दौर ही हैl श्री चौहान सामाजिक क्षेत्र में गतिविधियों में सक्रिय हैं,तो स्वतंत्र लेखन,सामाजिक जागरूकता,तथा संस्थाओं-वकालात के माध्यम से सेवा भी करते हैंl लेखन में आपकी विधा-काव्य,व्यंग्य,लघुकथा और लेख हैl आपकी उपलब्धि यही है कि,उच्च न्यायालय(इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता जारी हैl

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