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तोरण द्वारों से सजी अवध पुरी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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तोरण द्वारों का समां, दीप ज्योति त्यौहार।
विजय पताका सत्य की, आलोकित संसार॥

मिटे पाप घनघोर तम, धर्म ज्योति चहुँ ओर।
देख अयोध्या राम ने, तोरण द्वार विभोर॥

तोरण द्वारों से सजी, अवधपुरी चहुँ ओर।
खड़े सैन्य दुहुँ ओर पथ, दर्शन राम हिलोर॥

लखनलाल मन मुदित लखि, चहुँ तोरण बहु द्वार।
खल दल मद तम नाशकर, सत्य दीप पथ हार॥

दानवता का कर शमन, मानवता उपहार।
तोरण द्वारों में सजे, राम नाम जयकार॥

पटी अयोध्या पुरी है, तोरण द्वार विशाल।
दुर्ग महल अट्टालिका, दीप सजे दीवाल॥

रौनक खुशियाँ सुखद पल, सिया राम इक दृष्टि।
तोरण द्वारें भीड़ जन, बरसे स्नेहिल वृष्टि॥

राजा-मंत्री आगमन, बनते तोरण द्वार।
समझें स्वागत यह प्रथा, आतिथेय उपहार॥

अभिनंदन सिय राम का, लखन लाल हनुमान।
मीत विभिषण साथ में, सुग्रीव भील महान॥

दीप जले परमार्थ जग, राम राज्य शुभ गान।
सत्य दी की शुभ दीया, जले अवधपुर शान॥

शान्ति कान्ति आदर प्रणय, जले ज्ञान चहुँ दीप‌।
शील त्याग गुण कर्म यश, कोशलराज महीप॥

हो जीवन परमात्ममय, रामचंद्र यशगान।
दीपों की शुभ आवली, कल्याणक वरदान॥

तोरण द्वारों पर खड़े, स्वागतार्थ पुर लोक।
कपि सेना भी साथ में, देख मिटे सब शोक॥

विजय दीप चहुँ प्रज्जलित, अवधी तोरण द्वार।
तिहुँ माता ले थाल को, आरत राम तिहार॥

नगर अयोध्या विजय पथ, तोरण द्वार विशेष।
म़ंगल गीत सुस्वागतम्, दीपक जले अशेष॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥