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दरकती है दीवार

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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घर हो या झोपड़ी, मान्यता,
है बड़े-बुजुर्ग वृद्धजनों की
अभाव नहीं होता है, सुखी,
जीवन ज्ञान भरे धनों की।

सुख-वैभव का एहसास,
होता है उनके संग रहने से
चिंताएं दूर होती है, उनके,
संस्कारी शब्द सुन लेने से।

सन्त कहते हैं, वृद्ध-बड़े-बुजुर्ग,
घर की बुनियाद होते हैं
अपने अनुज बालकों की,
बुजुर्ग सभी फरियाद सुनते हैं।

बड़े-बुजुर्गों की छत्र-छाया,
सदा भवन से उठते ही
दीवार में दरार पड़ जाती है,
क्षणभर में, देखते-देखते ही।

‘दरकत जाती है दीवार’,
छोटी-तीखी बात से परिवार में
दो हिस्से में बंट जाया करते,
घर-आँगन, प्यारे रिश्तेदार।

श्रीगुरु कहते हैं बुजुर्गजनों की,
उपस्थिति बहुत जरूरी है
वरना घर को हिस्सों में बांट देना,
परिजन की होती मजबूरी है।

‘देवन्ती’ सेवा-देखभाल करें,
जिनके यहाँ बड़े-बुजुर्ग हैं
क्योंकि गृह क्लेश मिटाने का,
वृद्ध-बुजुर्ग को तजुर्बा पूर्ण है।

कभी अनादर ना करें बुजुर्गों का,
इन्हें समझिए भगवान हैं
अहमियत हम समझते नहीं,
क्योंकि अनुभवहीन-नादान हैं।

घर में सबको रखते हैं वृद्ध,
बुजुर्ग मिलाकर परिवार।
गुरुजन भी हैं बड़े-बुजुर्ग,
नहीं रहे तो दरकेगी दीवार॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |