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दर्द

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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वह अपने दर्द को,
दवा से दबा देती है
वो भी अपने दर्द को,
सहने की कोशिश
करता रहता है,
कमरे के एक ही
पलंग पर दोनों
अपनी-अपनी जगह

सोए पड़े रहते हैं…
दर्द से कराहता
कोई नहीं है
गहरी नींद में
सोने का नाटक
दोनों बख़ूबी निभाते हैं
एक-दूसरे को
कुछ भी कहते नहीं
ख़याल रखते हैं
एक दूसरे का
अपने दर्द की
कहानी से शायद
दूसरे की परेशानी का
इसीलिए शायद
अपनी-अपनी जगह
सोए पड़े रहते हैं…

भोर तक करवटें
बदल-बदलकर
सोने की कोशिशें
कामयाब हो जाती है
तब दूसरी सुबह
बिस्तर की सिलवटें
गवाह देती है
रातभर के दर्द की…॥

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