कुल पृष्ठ दर्शन : 763

You are currently viewing प्यासे कौए जैसे परिश्रम की आवश्यकता

प्यासे कौए जैसे परिश्रम की आवश्यकता

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
***************************************************

जल ही कल…..

जी हाँ, यह बिल्कुल सत्य है कि जल है तो कल है। इसके बिना हम सभी प्राणियों का जीवित रहना असंभव है, इसलिए ऐसा कहा भी गया है कि जल है तो कल है। हमारी रोजमर्रा की दैनिक ज़रूरतें जल से ही पूरी होती हैं। पृथ्वी का ज़्यादातर हिस्सा जल से भरा हुआ है। उसमें पीने और उपयोग करने वाले जल की मात्रा बहुत कम है।
मनुष्य को नदी, तालाब, कुंआ इत्यादि जल स्रोत से जल प्राप्त होता है, जिसका उपयोग हम दैनिक गतिविधियों में करते हैं। पृथ्वी पर दिन-प्रतिदिन जनसंख्या बढ़ रही है, जिसकी वजह से जगह- जगह पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की तक़रीबन आधी जनसँख्या अपने जीवन-यापन के लिए कृषि पर निर्भर है, और कृषि पूर्णतया जल पर, जिस प्रकार भारत जल के संकट से जूझ रहा है, वो दिन दूर नहीं जब हम आने वाले भविष्य की कल्पना भी नहीं कर पाएंगे। हम आज अपने मौलिक अधिकारों की बात तो करते हैं, पर क्या हमें अपने कर्त्तव्य का बोध है ? महात्मा गाँधी ने कहा है कि अधिकार एवं कर्त्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं तो हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। इसी सम्बन्ध में मुझे एक पुरानी किवदंती याद आ रही है- एक कौआ प्यासा था। घड़े में थोड़ा पानी था। कौए ने जिस प्रकार दो घूंट पानी के लिए संघर्ष किया था, आज हमें भी उसी परिश्रम की आवश्यक्ता है अपनी अमूल्य धरोहर जल को बचाने के लिए।
एक सर्वे के अनुसार भारत के कई शहर-दिल्ली, अहमदाबाद, बैंगलोर और हैदराबाद में पानी का स्तर इतना कम हो गया था कि, २०२० तक ये ३ राज्य जलविहीन हो जाते, यदि बारिश अच्छी नहीं हुई होती। भारत में बहुत से ऐसे राज्य हैं जहाँ गर्मी के मौसम में जलसंकट हो जाता है और जल खरीदना पड़ता है। तेलंगाना के हैदराबाद शहर में गर्मी के मौसम में जल स्तर इतना घट जाता है कि बोर से पानी ही नहीं आता है। कैसी विडम्वना है कि, जो जल प्रकृति द्वारा हमें नि:शुल्क प्रदत्त है, आज हमें उसे खरीदना पड़ रहा है। इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
हम ये तो जानते हैं कि जल है तो कल है, पर क्या हम ये मानते हैं ? क्या कभी स्वयं से ये प्रश्न किया है कि हमारे जीवन में जल क्या महत्व है ? एक पुरानी कहावत है कि ‘बून्द-बून्द से सागर भरता है।’ यदि बून्द-बून्द से सागर भरता है तो वो ख़तम भी हो सकता है, अगर हम उसे बर्बाद करते हैं।
बहुत सी ऐसी सामाजिक संस्थाएं हैं जो जल संरक्षण की ओर अपना प्रयास कर रही हैं और सफल भी हो रही हैं। वे जनता को जल बचाने के प्रति जागरूक भी कर रही हैं एवं ऐसे आयामों की व्यवस्था भी कर रही हैं जिससे वर्षा के पानी को इकट्ठा करके जलसंकट से निपटा जाए।
कहते हैं कि, शिशु की प्रारंभिक पाठशाला घर से शुरू होती है तो हमें सर्वप्रथम स्वयं एवं परिवार को शिक्षित करना होगा। उन्हें बताना होगा कि, जल की बर्बादी को कैसे रोका जाए। अपने घरों में नहाने के लिए झरनों के स्थान पर बाल्टी का प्रयोग, ब्रश करते समय नल को बंद रखने के इत्यादि तरीकों से पानी को बर्बाद होने से बचा सकते हैं। आजकल शहरों में शुद्ध पानी के लिए लोग अपने घरों में जल शुद्धक का प्रयोग करते हैं। इससे निकला अशुद्ध पानी पाइप के रास्ते नाली में गिरता है। यदि हम उस पानी को इकठ्ठा कर लें तो उपयोग स्नान एवं ब्रश करने में कर सकते हैं। इन छोटे प्रयोगों से जल बर्बाद होने से बचा सकते हैं।
एक दूसरा तथ्य यह भी है कि जो जल आज हम अपने लिए प्रयोग करते हैं, वो प्रदूषण-रहित होना चाहिए। प्रदूषित जल से आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को गंभीर रोगों का सामना करना पड़ता है। आज हम जिस वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वहां प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि न तो वायु शुद्ध है और ना ही जल। वर्तमान परिस्थिति में इन संकटों से लड़ने के लिए जागरूक रहने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है कि लोग जागरूक नहीं हैं। बहुत से लोग इन समस्याओं से लड़ रहे हैं और उनका जीवन हमें इस बात की प्रेरणा देता है कि हमें स्वयं को जागरूक रखते हुए उनका साथ देना चाहिए।
एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा है कि ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है।’ यदि हम ये मानते हैं कि जल है तो कल है, तो हमें अविष्कार करने होंगे। अविष्कार से तात्पर्य वैचारिक अविष्कार से है जिससे हम जल है तो कल है के महत्व को स्वीकारते हुए जल के संवर्धन को अपना परम कर्त्तव्य मानते हुए समाज को शिक्षित करें एवं अपनी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन दे सकें। इसके लिए हमें वर्षा के जल का संग्रह कर उपयोग में लाना चाहिए। जगह-जगह जलाशयों का निर्माण कराना चाहिए और जो जलाशय हैं, उनको सुरक्षित रखना चाहिए। आज हम स्वार्थी हो गए हैं इसलिए हमें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

Leave a Reply