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दीए हम जला लेंगें

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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कुछ दीए तुम ले आना,कुछ बाती हम बना लेंगें,
डाल तेल प्रेम का,दीए हम जला लेंगें।

जब तक लौ प्रेम की जलती,रोशन जहाँ रहेगा,
नोक-झोंक की खट्टी-मीठ्ठी तकरारों से
बुझते दीयों की लौ बढ़ा लेंगें।
दीए हम जला लेंगें…॥

गमों के सागर में दर्द की लहरें हैं,
गर मिटा नहीं सकते दर्द किसी का
दो कदम तुम चलो,दो कदम हम,
कोशिश तो करो यारों,दर्द कम करा लेंगें।
दीए हम जला लेंगें…॥

पाप,अनाचार,व्यभिचार का जग में बोलबाला है,
क्या कभी हमने अपना मन टटोला है
माफ कर औरों को अपने दोष मिटा लेंगें,
कर बुलंद खुद को,राम राज फिर ला देंगें।
दीए हम जला लेंगें…॥

हैं लाचार,गऱीबी,बेरोजगारी जहाँ में,
रख मेहनत की आग और सेवा का भाव
कर प्रयोग प्रतिभा का,व्यवसाय नए सिखा देंगें
काम नहीं कोई छोटा,जहाँ को बता देंगें,
दीए हम जला लेंगें…॥

ये माना एक दीए से जहाँ रोशन नहीं होता,
अंधेरे में राह दिखाने को,एक दिया भी कम नहीं होता।
एक दिया तो जलाओ यारों,एक-एक करके,
हम कारवां बना लेंगें,दीए हम जला लेंगें॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनामगीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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