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तुलसी देवे नमः नमः

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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“यत्र नार्य्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:”
(मनुसंहिता)
नारी ही आदि शक्ति,आधार स्वरूपा महाशक्ति,महालक्ष्मी, महासरस्वती। सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभुते सनातनी! सुधामृत सिंचित करते हुए सृष्टि तथा संतान पालनकर्ती। नारी ही जगत प्रसूता,जननी। आदि अंत काल से संसार का आपातकाल में विश्व त्रिभुवन को रक्षाकर्ती एकमात्र आदिशक्ति महामाया ही नारी!”
अत्याश्चर्य की बात यह है कि,पुरूष प्रधान व पुरूष प्रशासित विश्व को,संसार को,संतानों को लालन-पालन करते हुए संसार में प्राणप्रवाह को अक्षुण्ण रखकर संकट समय में रक्षाकर्ती नारीl
सृष्टि को विधंसित होने से रक्षा करनेवाली महाशक्ति महामाया चण्डी,दुर्गा,काली,धन-धान्य प्रदायनी लक्षमी,ज्ञान विद्या प्रदायनी सरस्वती,प्राणियों को जन्मदात्री-धात्री सब ही केवल स्त्री अर्थात नारी। इसलिये,विश्व के सकल धर्म में नारी का एक महत्वपूर्ण सम्मानजनक सुउच्च स्थान निर्धारित किया गया है-सर्वजन पूज्या। यह भी कहा जाता है सर्व धर्मीयग्रन्थ में-“जहाँ नारी को सम्मान मिलता है,वहाँ सकल देवता निवास करते हैंl शौर्य वीर,धन-धान्य ,सुख-समृद्धि,यश-कीर्ति सकल ही वहाँ सदा विराजमान होते हैं। सभी का मूल ही है नारीl”
नारी के सौजन्य या गुणों के कारण जैसे विश्व की प्रगति वृद्धि, अनुरूप विश्व में युद्ध,विधंसीय लड़ाई के कारण भी है यह नारीl देव उठनी एकादशी,तुलसी पूजन का दिव्य तारीख है। तुलसी तो एक पौधा मात्र है,परन्तु माहात्य मातृ रूपे हैl बिना तुलसी के सर्वपूजा निष्फल होती है। ईश्वर को भोग भी नहीं लग सकता है। इतना सम्मानीय स्थान एक पौधे का मातृ रूप में हैl तुलसी भी एक नारी ही हैl
पुरानोक्त कहानी तो सर्वज्ञात है,जैसे-कौन है तुलसी ? क्यूँ पूज्य ? क्यूँ इतना महत्व है उनका,आदि-आदिl फिर भी अति संक्षेप में माता तुलसी देवी को प्रणाम के साथ-हे माते तुलसी देवी,असुर कुल में जन्म व असुर पत्नी होने के बावजूद भी आपकी पवित्रता व परम निष्ठा सहित पतिव्रता सती होने के कारण आप पूज्या हैं। आपके दर्शन मात्र से सब शुभ,सर्व पापों का नाश होता है। हे महाबली असुर राजा जलन्धर की सर्वगुण सम्पन्ना परम सुन्दरी पत्नी। आपकी ही पवित्रता व सतीत्व के कारण असुर राजा जलन्धर ने दीर्घायु को प्राप्त किया था। देव एवं असुरों के बीच भीषण युद्ध में देवताओं पर असुर व असुर राजा जलन्धर भारी पड़ने लगेl देवताओं की पराजय करीबन निश्चित जानकर सभी देवताओं ने सर्व अन्तिम आश्रय तारणहार सृष्टि के रचनाकार श्री श्री विष्णु सर्व शक्तिमान नारायण के स्मरणागत होकर भीषण पराक्रमी असुर राजा (जो परम सती तुलसी देवी के पति) के लिए पति की रक्षा व सुरक्षित दीर्घायु की कामना की। सती तुलसीदेवी के कारण महाबली असुर राजा जलन्धर से रक्षा करने हेतु निवेदन कर प्रार्थना करने लगे। परमेश्वर नारायण ने देखा कि, जब तक परम पवित्र सती पत्नी की पवित्रता को खोटा नहीं किया जाए,तब तक असुर राजा जलन्धर का निधन कर पाना असम्भव है। अतः,नारायण देवताओं के संग युद्धरत असुर राजा जलन्धर का रूप धारण करते हुए व्रतरता सती तुलसी के सामने उपस्थित हुए। सती तुलसी ने देखा कि स्वामी ज्ञान में व्रत को बीच में ही अपूर्ण रख कर जलन्धर के रूप को छलपूर्वक धारण कर आया है,तो नारायण श्री विष्णु के श्रीचरणों को स्पर्श किया। पर पुरूष को स्पर्श कर पवित्रता से स्खलन व स्वामी कल्याण में जारी व्रत को अपूर्ण करने के कारण सती तुलसी की पवित्रता खण्डित हुई। उधर सही सुयोग को लेकर देवताओं ने रण में जलन्धर के मस्तक को काट डाला। जलन्धर का कटा हुआ मस्तक तुलसी के सामने आ गिरने पर तुलसी ने नारायण को नकल स्वामी के रूप में पहचान कर रोते हुए अभिशाप दिया, जिसके कारण नारायण को शालीग्राम शिला के रूप में परिवर्तित होने परा। तुलसी ने जलन्धर के कटे हुए मस्तक को गोदी में धारण कर स्वामी की चिता में बैठकर सतीत्व का लाभ लिया। उक्त चिता की राख में एक पौध का अविर्भाव हुआ,जिसको तुलसी के नाम से जाना जाता। नारायण श्री हरि ने वरदान दिया कि,नारायण पूजा में, नारायण के भोग में तुलसी अनिवार्य होगी। बिन तुलसी से नारायण पूजा अशुद्ध एवं सर्व प्रकार के पूजन से फलहीन होगी। तुलसी शापित शालिग्राम शिलारूपी नारायण श्री विष्णु कार्तिक शुक्ला एकादशी के पुण्य लग्न में तुलसीदेवी को प्रिय पत्नी के रूप से स्वीकार करते हुए तुलसी देवी का मान को रखा है।
हे,देवी,आप,सर्वोषधि सम्पन्ना सर्वसुखप्रदायिनी सदा यौवनवती दिव्यप्रभा सम्पन्ना सर्वदेवता व जगतपूज्या नारायण प्रिये सुश्री महारानी।
हे वृन्दे,परम निष्ठावती सती,आपका गुण वर्णन ध्यान में देवर्षिगणों ने स्तवन गान में किया है-
“ध्यायेद्देवीम नवशशिमुखिम पक्कबिम्बाधरोष्ठिम।
विद्योतन्तीम कचयुगभरानम्रकल्पनान्ग षष्ठीम॥
ईषोदध्यासोल्लसितबदनाम चन्द्रसूर्याग्निनेत्राम।
श्वेताङ्गीम तामभय बरदाम श्वेतपद्मासनस्थाम॥
ओम नम: भगवती तुलसी देवै नमः नमः॥”

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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