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दीपावली और तुम

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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दीपावली विशेष…

कुछ भी करने से पहले से,
अवचेतन कर लेता है बात
कुछ सुनती-सी, सुनाती-सी,
बताती-सी, समझाती-सी
जैसे थामे, मेरा हाथ,
अब भी तो तुम मेरे साथ।

कितने दीए जलाऊँ,
कितनी आरती गाऊँ
सामान क्या-क्या लाऊँ,
किसको क्या लेना-देना
कैसे अनुमान लगाऊँ ?
स्मृति में पहुँच कर लेता बात,
अब भी तो तुम मेरे साथ।

क्या ठीक क्या गलत,
मुझे सब नहीं पता
तुम नहीं दिखती साक्षात,
पहले सामने देख कर
अब भीतर झांक कर,
पूछता लेता हर बात,
अब भी तो तुम हो साथ।

कुछ मसले जो तब लटके थे,
अब हो गए और बड़े हैं
बैठता हो कर जब उदास,
तब तुम आ जाती पास
समझाती, ढांढस बंधाती,
माथे पर आ जाता हाथ
अब भी तो तुम मेरे साथ।

आई फिर अब दीवाली है,
सब भरा भी, पर सब खाली है
स्मृति-चित्रों से बटोर कर यादें,
भर रहा हर कोना, जो खाली है
कुछ भी नहीं दीवाली में ऐसा,
जो हो सके बिन तुम्हारे साथ।
दीवाली पर याद तुम्हारी हर बात,
अब भी तो तुम मेरे साथ॥

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