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दीवार

केवरा यदु ‘मीरा’ 
राजिम(छत्तीसगढ़)
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आँगन में दीवार देख कर सोच रही माँ खड़ी-खड़ी,
रिश्तों में दरार पड़ गयी,आई है ये कैसी घड़ीl

बचपन में संग खेला,तूने संग-संग की पढ़ाई,
तू है मेरा प्यारा छोटा अव्वल आना भाई।
लगता है अब टूट गई रिश्तों की नाजुक कड़ी,
रिश्तों में दरार पड़ गयी,आई है ये कैसी घड़ीll

पैसा अब भगवान बन गया,भाई से भाई लड़ता,
धन-दौलत के लिये पुत्र अब पिता की हत्या करता।
बोझ लगे मात-पिता अब लगी अँसुवन की झड़ी,
रिश्तों में दरार पड़ गयी,आई है ये कैसी घड़ीll

अंहकार में मनुज है जकड़ा,बिखर गया परिवार,
इंसानियत कहाँ खो गयी मन में तनिक विचार।
तेरा ही परिवार है वह,क्यों कर अकड़ा-अकड़ी,
रिश्तों में दरार पड़ गयी,आई है ये कैसी घड़ीll

आँगन में दीवार देख कर सोच रही माँ खड़ी-खड़ी,
रिश्तों में दरार पड़ गयी,आई है ये कैसी घड़ीll

परिचय-केवरा यदु का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। इनकी जन्म तारीख २५ अगस्त १९५४ तथा जन्म स्थान-ग्राम पोखरा(राजिम)है। आपका स्थाई और वर्तमान बसेरा राजिम(राज्य-छत्तीसगढ़) में ही है। स्थानीय स्तर पर विद्यालय के अभाव में आपने बहुत कम शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में खुद का व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के तहत महिलाओं को हिंसा से बचाना एवं गरीबों की मदद करना प्रमुख कार्य है। भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए ‘मितानिन’ कार्यक्रम से जुड़ी हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल सहित भजन है। १९९७ में श्री राजीवलोचन भजनांजली,  २०१५ में काव्य संग्रह-‘सुन ले जिया के मोर बात’,२०१६ में देवी भजन (छत्तीसगढ़ी में)सहित २०१७ में सत्ती  चालीसा का भी प्रकाशन हो चुका है। लेखनी के वास्ते आपने सूरज कुंवर देवी सम्मान,राजिम कुंभ में सम्मान,त्रिवेणी संगम साहित्य सम्मान सहित भ्रूण हत्या बचाव पर सम्मान एवं हाइकु विधा पर भी सम्मान प्राप्त किया है। केवरा यदु के लेखन का उद्देश्य-नारियों में जागरूकता लाना और बेटियों को प्रोत्साहित करना है। इनके जीवन में प्रेरणा पुंज आचार्यश्रीराम शर्मा (शांतिकुंज,हरिद्वार) व जीवनसाथी हुबलाल यदु हैं। 

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