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वापसी (स्वयं की)

अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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मन खोने लगा है एक अनकही में,
शब्द पिरोने लगा है एक अनकही में।
कुछ धुँधली-सी हुई जो तस्वीर मेरे अस्तित्व की,
परतें उस पर से हटाने लगी हूँ मैं धूल की।
रंगों से कुछ दूरी भी हो गयी थी मेरी,
वही आँखें तितलियों को निहारतीं हैं मेरी।
झूम-सी जाती है बगिया मन की,
जब बयार चलती है कुछ अधूरे स्वप्नों की।
अब स्वयं को कमतर नहीं आँकती हूँ मैं,
कभी यूँ ही ख़ुद को भी निहारती हूँ मैं।
क्यों न करूं प्रेम स्वयं से,जो बरसाया सदैव अपनों पर,
क्यों न हटा दूं विराम जो लगाया अपने सपनों पर।
ढूंढ ही लूंगी अपना आसमां जो कर लिया हौंसला,
उड़ने की क़ीमत जो भी हो चुकाने का कर लिया फ़ैसला।
रोक कर ख़ुद को सोचा कि त्याग किया है,
ये नहीं समझा कि स्वयं से अन्याय किया है।
जो बीत गया,वो समय फ़िर लौट कर आता नहीं है,
क्यों इतनी-सी बात हम स्त्रियों को कोई समझाता नहीं है ?
क्यों पाठ हमको ही पढ़ाए जाते हैं त्याग के ?
क्यों नहीं कोई कहता कि तुम भी जियो जी भर के…l
बात बस इतनी-सी है मेरे अपनों के समझने की,
जब रहूंगी मैं पूर्ण तो अहमियत दूँगी तुमको भीll

परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”

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