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देश की मिट्टी और हमारे कर्तव्य

राधा गोयल
नई दिल्ली
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देश की मिट्टी यानि मातृभूमि। मातृभूमि का अर्थ उस स्थान से संबंधित है, जहाँ एक मनुष्य का जन्म हुआ या उसके परिवार का जन्म हुआ। इससे वह व्यक्ति भावनात्मक रुप से उस देश से जुड़ जाता है और उस धरती को माता मानता है। भारत हमारी मातृभूमि है, इसलिए हम सभी को अपनी मातृभूमि का माँ की तरह सम्मान करना चाहिए।

मिट्टी से लगाव स्वाभाविक है, पर आज युवाओं का विदेशी संस्कृति से लगाव बढ़ता जा रहा है। वे विदेशों में बस जाने को आतुर रहते हैं। इसमें अपनी शान समझते हैं। यह नहीं सोचते कि, जो अपनी जड़ों से कट जाता है, वह कहीं का नहीं रहता। अपनी जड़ों से जुड़े रहना बहुत जरुरी होता है। कहा भी गया है-
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
जिस मिट्टी में हमने जन्म लिया, उसकी गोद में पलकर बड़े हुए तो उसके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। जैसे- गाँव और शहरों का विकास, स्वच्छता, सुशासन, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, गरीबी को दूर करना आदि। सबके लिए रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था होना, सभी का सम्मान करना, हर हाथ को काम मिले, सभी सामाजिक मुद्दों को समझना और उनको दूर करना,जैसे- बालश्रम पर रोक, विधवा विवाह को बढ़ावा एवं अपने मत का प्रयोग करना, क्योंकि केवल एक मत से भी हार-जीत हो जाती है जिसके कारण शासन कभी गलत हाथों में भी चला जाता है। अधिकार के साथ-साथ हमारी अपनी माटी, अपनी मातृभूमि, अपने देश के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन व कर्म से राष्ट्रहित के कार्य करें। अपने जीवन मूल्यों को पहचानें। आधुनिकता की दौड़ में हम सब अपने दायित्व का सही तरीके से पालन करने में भूल कर जाते हैं। राष्ट्र के जो भी संसाधन हैं, चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा कत्रिम, उनका सही इस्तेमाल करना हमारा कर्तव्य है। आज सभी जानते हैं कि धरती का किस प्रकार दोहन हो रहा है। संसाधनों का गलत इस्तेमाल करके पर्यावरण कितना प्रदूषित हो गया है। विकास के नाम पर विनाश को न्यौता दिया जा रहा है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटा जा रहा है। भूल जाते हैं कि वृक्ष हमें फल-फूल के अलावा प्राणवायु और शीतल हवा भी देते हैं। पंछियों के लिए बसेरा बनते हैं। केदारनाथ और ऋषि गंगा में भयंकर तबाही हुई थी। इन सब बातों की ओर भी बुद्धिजीवियों को सोचना होगा।
आज शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। आजादी के कितने वर्षों बाद भी इस देश में लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुसरण हो रहा है। आज के बच्चों का अपनी मातृभाषा से लगाव कम होता जा रहा है। वे केवल अंग्रेजी भाषा जानते हैं। क्या उनका अपनी मिट्टी के प्रति कोई फर्ज नहीं बनता ? हम सभी कामों की जिम्मेदारी सरकार के ऊपर डाल कर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेते हैं। हम कब जागेंगे ? कब अपने स्तर पर मातृभूमि, देश के उत्थान के लिए कोई काम करेंगे ? कब अपने वतन को प्रगति के पथ पर ले जाएंगे ? क्या उच्च शिक्षा प्राप्त करके विदेश में जाकर पैसा कमाना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए, या अपने ही देश में रहकर उसकी तरक्की के प्रयत्न करने चाहिए ?
हमारी मातृभूमि हमारे हृदय में स्वाभिमान का भाव जगाती है। मनुष्य के जीवन में मातृभूमि का बड़ा महत्व है। दूसरे देशों में हमें कितनी भी सुख-सुविधाएँ मिल जाएँ, हमारी मातृभूमि कभी नहीं बन सकते। विदेशों में जब हम अपने राष्ट्रध्वज को देखते हैं या राष्ट्रगान सुनते हैं तो एक अलग ही प्रकार की अनुभूति होती है। अपने देश के प्रति जुड़ाव की भावना मन में आ जाती है। अपनी प्यारी मातृभूमि पर हमें सदा सर्वस्व निछावर पर देने के लिए तैयार रहना चाहिए। जिस प्रकार मनुष्य प्रेम और त्याग के साथ अपने परिवार का पोषण करता है, उसी प्रकार प्रेम और त्याग के साथ उसे अपने देश की रक्षा करनी चाहिए।
किसी देश का निर्माण करने के लिए मिट्टी का निर्माण करना बहुत जरुरी होता है। वही इस देश का आधार है। बालू पर राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। उसके लिए एक ठोस आधार पर चट्टानी नींव चाहिए। वह केवल चरित्र द्वारा ही हासिल किया जा सकता है। अभी तो हम लोग प्रादेशिक नीतियों और स्वार्थ द्वारा केन्द्रित होते हैं। देश के लिए कोई नहीं सोचता।
मुद्दे की बात है कि, समग्र देश के विकास के लिए काम करना है। कारण… देश जीवित तो प्रदेश भी बचा रहेगा और देश नष्ट हो गया तो प्रान्त भी नहीं बचेगा। हमारा अस्तित्व…प्रदेश का अस्तित्व… देश के एक अंग के रूप में सुरक्षित है। यदि हम देश की उपेक्षा कर देंगे, तो वह हमारे लिए बहुत दुर्भाग्य की घड़ी होगी। युवकों से अपेक्षा की जाती है कि उन्हें अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए जीवित रहना है, लेकिन आजकल तो सब- कुछ उल्टा है। हम चरित्र पर कोई बल नहीं देते और न ही इसकी चर्चा की जाती है। विद्यार्थी अन्य भाषाओं के साथ-साथ भारतीय स्थिति को समझें और अपनाएं।
शिक्षा का प्रथम कर्तव्य है देश के हर बच्चे को देश का सच्चा नागरिक बना देना। यह तभी संभव है जब उसे देश की संस्कृति के बारे में सिखाया जाए, पर ऐसा न करके बिल्कुल उल्टी बातें सिखाई जा रही हैं। फलस्वरुप मानव मूल्यों पर बल नहीं दिया जा रहा। देश को महान बनाने के लिए हमें प्राचीन भारत की शिक्षा पद्धति और जीवन मूल्यों को खोजना होगा, जिनकी वजह से हमारा देश महान बना है और फिर उन आदर्शों की पुनर्स्थापना करनी होगी। अपनी माटी से जुड़ना होगा।
धर्म हमारे जीवन का आधार है। यह हमारा धर्म है कि, देश के प्रति हमारे कर्तव्य भी हैं। हम सभी क्षेत्रों में उन्नति करने की तलाश करें। शिक्षा, साहित्य, कला, राजनीति आदि में नवजागरण की बहुत आवश्यकता है। हमारी प्राथमिक आवश्यकता है धर्म। धर्म कहता है कि हम पहले मनुष्य बनें। यदि हम मनुष्य नहीं बन सकते तो कोई भी काम सार्थक नहीं होगा। तब हम आपस में झगड़ा ही करेंगे, एक-दूसरे को मारेंगे। इसलिए पहले मनुष्य बनने की चेष्टा करें। हमें चरित्र निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी। मनुष्यत्व से युक्त होकर हम वृहत्तर भारत के गठन में जुट जाएं और माटी के प्रति अपना कर्तव्य निभाएँ। अपने देश को विश्व मंच पर उच्च स्थान पर स्थापित करें। समस्त घृणा और ईर्ष्या द्वेष को दूर करके एक विश्व का निर्माण करें।

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