सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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कर्मवीर धीर बनें, धैर्यता में सशक्त हो,
राष्ट्रहित में जुटे रहें, यही हमारा धर्म हो।
जीवन के सुखद क्षणों में,
जीवन जी लेना कष्टों के
पराकाष्ठा में संभल-संभल के।
सत्य-अहिंसा परम धर्म हो,
अपने सुपथ की ओर बढ़ें,
कदम यही हो प्राण पन्न सेवा।
शीश नवाएं नील-गगन संग,
ऊँचे-ऊँचे पर्वत गिरीराज वन-प्रांत,
पैर पखारता दक्षिण अरब सागर।
कर्मवीर भारत के वीर सपूतों,
बने कश्मीर से कान्याकुमारी
भारत भूमि धर्मक्षेत्रे कर्म-भूमि।
कर्त्तव्य कर्मनिष्ठवान बन के नि:स्वार्थ,
र्निविबंध हो कटिबंध से प्राणों को
बलि देना ही हो हमारा लक्ष्य प्रधान।
भारत मातेय की सर्वसिद्ध सेवा में,
रमे-रमाए तन-मन से पौरूषत्व
गरिमा को संभाले संभाल के।
तमसो माँ ज्योतिर्गमय से जागृत होते,
भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता व संस्कार
अमूल्य आद्वितीय गौरव महात्मय।
राष्ट्रगीत जन गण मन की मर्यादा,
सारगर्भित हो जन कल्यान में उदित
सूर्यभान की छवि अदृश्य आकृति में।
अनंत क्षितिज के अंतोदय में प्रखरित,
हो चंद्रयान की ओर अस्तित्व स्वत:
सूर्ययान की अंतरिक्ष परिक्रमा से।
परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।