जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
*******************************************
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में।
चाँदनी करती तमाशा राख टीलों के शहर में॥
पाँव दल-दल में सभी के और आगे बढ़ रहे हैं,
देश के कानून का आलेख उल्टा पढ रहे हैं।
हाथ में भाला लिए हैं कुटिल भीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥
जुगनुओं को देखिए तो आँख सूरज को दिखाते,
आढ़ती के जाल को सुंदर कढ़ी चादर बताते।
अक्ल पर पत्थर पड़े हैं इन कबीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥
फौज पर उंगली उठाते हैं यहां लफ्फाज देखो,
सरहदें थामे खड़े हैं देश के जांबाज देखो।
जान की बाजी लगाये काक चीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥
चोर-चौकीदार में भृकुटि लगी हैं रोज तनने,
एक साधु आ गया लो देश का सरदार बनने।
योजना फिर से बनेंगी सुस्त ढीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥
प्यार की ग़ज़लें नहीं अब काम आएंगी यहां पर,
अब रुदाली मौत के आँसू बहायेगीं यहां पर।
आग गीतों में बहेगी इन हठीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥
योजनाएं आ गयीं लो कौम को आगे बढ़ाने,
पर यहां कुछ लोग तो उल्टा लगे इनको पढ़ाने।
कौन क्या आगे बढ़ेगा तार कीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥
प्रश्न माली पर उठाते कह रहे दुश्मन चमन का,
दे रहा पैगाम ‘हलधर’ देश में सबको अमन का।
खो न जाए योजना झूंठे वकीलों के शहर में,
बादलों की है नुमाइश शुष्क झीलों के शहर में…॥