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धर्मपत्नी

केवरा यदु ‘मीरा’ 
राजिम(छत्तीसगढ़)
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मैं नारी ही धर्मपत्नी हूँ,
मैं प्रियतम की संगिनी हूँ
मैं साजन का प्यार हूँ,
मैं ही घर-परिवार हूँl
मैं सावन की फुहार हूँ,
मैं ही बासंती बयार हूँ
मैं दुल्हन बनकर आती हूँ,
मैं दो कुल को महकाती हूँl
मैं बाबुल को छोड़ आती हूँ,
मैं माँ का आँगन भूल जाती हूँ
मैं-मैं हर रंग में ढल जाती हूँ,
मै हर दर्द पी जाती हूँl
मैं अश्रु छुपा मुस्काती हूँ,
मैं अपनों को हँसाती हूँ
मैं घर को स्वर्ग बनाती हूँ,
मैं धर्मपत्नी कहलाती हूँ।
मैं राम की सीता हूँ,
मैं पावन परम पुनीता हूँ
मैं ही श्याम की राधा हूँ,
मैं पिया बिन आधी हूँl
मैं सत्यभामा रुक्मणी हूँ,
मैं साजन की वामांगिनी हूँ
मैं सिंदूर में बँध जाती हूँ,
मैं पत्नी धर्म निभाती हूँl
मैं आँगन मैं ही रंगोली हूँ,
मैं ही संतान की लोरी हूँ
मैं त्याग तपस्या वादा हूँ,
मैं रिश्तों की मर्यादा हूँl
मैं ही वृषभान दुलारी हूँ,
मैं पिया की प्यारी हूँ
मैं घर-आँगन महकाती हूँ,
मैं धर्मपत्नी बन जाती हूँll

परिचय-केवरा यदु का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। इनकी जन्म तारीख २५ अगस्त १९५४ तथा जन्म स्थान-ग्राम पोखरा(राजिम)है। आपका स्थाई और वर्तमान बसेरा राजिम(राज्य-छत्तीसगढ़) में ही है। स्थानीय स्तर पर विद्यालय के अभाव में आपने बहुत कम शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में खुद का व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के तहत महिलाओं को हिंसा से बचाना एवं गरीबों की मदद करना प्रमुख कार्य है। भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए ‘मितानिन’ कार्यक्रम से जुड़ी हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल सहित भजन है। १९९७ में श्री राजीवलोचन भजनांजली,  २०१५ में काव्य संग्रह-‘सुन ले जिया के मोर बात’,२०१६ में देवी भजन (छत्तीसगढ़ी में)सहित २०१७ में सत्ती  चालीसा का भी प्रकाशन हो चुका है। लेखनी के वास्ते आपने सूरज कुंवर देवी सम्मान,राजिम कुंभ में सम्मान,त्रिवेणी संगम साहित्य सम्मान सहित भ्रूण हत्या बचाव पर सम्मान एवं हाइकु विधा पर भी सम्मान प्राप्त किया है। केवरा यदु के लेखन का उद्देश्य-नारियों में जागरूकता लाना और बेटियों को प्रोत्साहित करना है। इनके जीवन में प्रेरणा पुंज आचार्यश्रीराम शर्मा (शांतिकुंज,हरिद्वार) व जीवनसाथी हुबलाल यदु हैं। 

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