प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
***********************************************************************
जब हम स्कूल में पढ़ते थे,और एन.सी.सी में ट्रेनिंग करने जाते थे,तो हमें सिखाया जाता था कि नेता का मतलब होता है-वह जो कि नेतृत्व कर सके,ग्रुप को लीड कर सके! और बताया गया था कि ये गुण हर आदमी में होना चाहिए! तो मुझे नेता शब्द से बहुत लगाव हो गया था,और मैं सोते-जागते नेता बनने के सपने देखने लगा था!
उस समय मुझे सिखाया गया था कि भीड़ का नेतृत्व करने के लिए आदमी में भाषण देने की कला भी होनी चाहिए! तो मैंने कॉलेज में दाखिला लेने के बाद अपने इस सपने को साकार करने की कोशिश शुरु कर दी,और मैं मंच से बोलने वाली स्पर्धा जैसे भाषण-वाद-विवाद इत्यादि में उत्साह से शामिल होने लग गया था,क्योंकि मुझे नेता जो बनना था!
जब छात्र संघ के चुनाव हुए तो मैं भी स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी की फाइट करने मैदान में कूद पड़ा! मैं स्टूडेंट्स को लीड करना चाहता था,उनका नेतृत्व करना चाहता था,इसलिए मैं यह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था,पर अब लोग मुझे नेता कह कर खुल्लम-खुल्ला संबोधित करने लगे थे! शुरू मैं तो मैं खुश होता था,पर बाद में लगा कि यह तो वे मेरी खिल्ली उड़ाने के लिए कह रहे हैं! यह उनका मुझ पर टोन्ट है,एक मजाक है!
कोई कहता-ऐ भाई,अब तुम पढ़ाई की जगह नेतागिरी करोगे! तो कोई कहता-लगता है पॉलिटिक्स जॉइन करने की तैयारी है,तो कोई कुछ और कमेंट पास कर देता,पर गज़ब तो तब हो गया,जब एक दिन मेरे बाबूजी ही बोल उठे-अच्छा तो अब बरखुरदार लीडरशिप करेंगे! पर यह सुन-सुनकर मुझे कुछ अजीब-सा फील होता! मैं सोचता कि नेतृत्व करना तो बहुत अच्छी बात है,तो फिर लोग मुझ पर ऐसी कमेंटबाजी क्यों करते हैं! मैं बहुत सोचता था,पर कुछ समझ नहीं पाता था! ख़ैर वक्त गुजरता गया,और मैं बैंक में नौकरी करने लगा, पर वहां भी जब भी मैं कर्मचारियों की ऑफिस सम्बंधी किसी परेशानी या असुविधा की बात प्रबन्धक या बड़े अफसरों से करता तो वे कहते-तुम नेतागिरी क्यों कर रहे हो ? मुहल्ले-पड़ोस, कॉलोनी,नगर की किसी भी समस्या या दिक्कत को मैं जब सम्बंधित विभाग के पास ले जाता,तो वहां के कर्मचारी मुझे देखते ही कहते-लो नेता आ गया! शुरू में मुझे ये अपनी तारीफ लगती थी,पर धीरे-धीरे मुझे समझ में आने लगा कि वे लोग मेरी हँसी उड़ाते हैं! फिर तो लोगों ने मुझे नेता कहना ही शुरू कर दिया! मानो मेरा असली नाम ही नेता हो!
मुहल्ला-पड़ोस,दफ्तर तो छोड़ दीजिए मेरे रिश्तेदार तक मुझे नेता कहने लगे थे! एक बार मेरे दो रिश्तेदार आपस में मेरे बारे में जब बात कर कर रहे थे,तो उनमें से एक दूसरे से बोला कि-दरअसल वो नेता नामक बंदा हर जगह उंगली करता है,हर जगह फटे में टांग अड़ाता है,इसलिए सब उसे नेता कहते हैं! हर जगह होशियारी दिखाना और अपनी चलाना उसकी आदत है,इसीलिए उस नेता को कोई पसंद नहीं करता है!
यह सुनकर मैं ‘काटो तो खून नहीं’ की हालत में पहुंच गया! मैं समझ गया कि प्रजातन्त्र और राजनीति के नेता तो अलग होते हैं,और उन्हें तो सब घोषित रूप में लांछित करते ही हैं,पर बाहर भी नेता को कदापि भी इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता! मैं समझ गया कि यह नेता वाला रूप तो हर जगह अपमानित है! वैसे नेता वाला रूप तो समाज में हर जगह दिखता है,अच्छे नेता भी मिलते हैं,पर लोगों को किंचित भीस्वीकार नहीं ! यह बात भी सत्य है कि सामाजिक क्षेत्र में भी,भले ही अच्छे मुद्दे को भी उठाया जाए,तो भी नेता शब्द लोगों की दृष्टि में अभिसप्त,प्रदूषित-अपमानजनक व तिरस्कृत ही होता है! उसमें परिहास,उपेक्षा व व्यंग्य ही छिपा रहता है! उसकी वजह यही है कि कुर्सी और मतों की राजनीति करने वाले नेताओं ने उल्टे- सीधे काम /धंधे करके इस अच्छे व पवित्र शब्द एवं पोजीशन को इतना बदनाम व प्रदूषित कर दिया है,इतना गंदा कर दिया है कि यह शब्द जैसे केवल और केवल गाली बनकर रह गया है!
तो भैया,अब तो मैंने कान पकड़ लिए हैं,तौबा कर ली है कि चाहे कुछ हो जाए,कैसा भी हो जाए,नेतागिरी करने का नहीं! कौन गाली सुनें! तो दोस्तों,हमने तो नेतागिरी करना पूरी तरह से छोड़ दिया है,आपकी आप जानें!
परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।