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नारी उदघोष

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष…………………


मैं प्रतीक विश्व सृजन शक्ति की,
मैं निर्माण का मधुर राग हूँ
त्याग और स्नेह से बनी हुई,
प्रकृति की करुणा का मैं भाग हूँ।

घृणा के रौद्र परिवेश में भी,
मैं प्रेम का मुक्त हस्तदान हूँ
होकर रहित भेदभाव से सदा ही,
मानव मात्र का महत कल्याण हूँ।

ममता की मैं शाश्वत गूंज हूँ,
दया का अविरत एक गीत हूँ
आहत के घाव को भरती जो,
मैं सर्व समर्पण रूपी प्रीत हूँ।

युक्त होकर खोटे अभिमान से,
समुद्र रत्नाकर नाम धरता है
मैं ही मानवता का वह सिंधु हूँ,
जो धरा को रत्नों से भरता है।

मेरी ममता मेरी करूणा नहीं,
बनाती है मेरे हृदय को दुर्बल
कठिनाइयों का अडिग होकर,
सके सामना,मुझमें साहस अचल।

अभिशाप नहीं कोई मैं इस जग पर,
मैं प्रकृति का अनमोल वरदान हूँ
विष की अंजुली को पीकर स्वयम,
कराती विश्व को सारे अमृत पान हूँ।

प्रतिशोध पथ पर चलते मानव को,
सुपथ बताने का मेरा ही यत्न है
नारी के अस्तित्व के बिना यह नर,
जैसे आभूषण बिना कोई रत्न है॥

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं। 
कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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