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नियमों में फँसी वाहनों की हिंदी अंक पट्टी

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हिंदी को राष्ट्रभाषा स्थापित होने के लिए सौ वर्ष हो गए और वह राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई या सकी,तथा शायद भविष्य भी कोई उज्जवल नहीं दिखाई दे रहा हैl किसी भी भाषा,धरम,संस्कृति के विकास के लिए राज्य आश्रय का होना आवश्यक है,पर हमारे देश में भाषा के कारण बंटवारा हो जाता हैl हम लोग तब खुश होते हैं,जब हमारे देश के नेता संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देते हैंl तब हमारा सिर गौरव से भर उठता है और हम एक घंटे के भाषण में यह समझने लगते हैं कि, हमारे देश की भाषा,हिंदी को बहुत उच्च स्थान मिल गया और हम गौरवान्वित होने लगते हैं,पर बाद में वही उलटे बांस बरेलीl
हमारा प्रदेश मध्यप्रदेश जिसे मनपसंद प्रदेश कहता हूँ,में इस समय उन निजी दो पहिया और चार पहिया वाहनों जिनमें नम्बर प्लेट हिंदी से लगी मिल रही है,उनके ऊपर चालान हो रहा हैl कानून-नियम सब-कुछ इसीलिए बने रहते हैं कि देश-प्रदेश-नगर की व्यवस्था सही चले,पर पर जो नियम समयानुसार परिवर्तन चाहते हैं,उनको करना चाहिए,यह बात सही है कि हमारा देश अनेक भाषाओँ से गुंथित है और हर दस मील में (भाषा)वाणी और पानी में परिवर्तन होने लगता है और इसके बावजूद देश-समाज चल रहा हैl हमारा प्रदेश हिंदी बाहुल्य प्रदेश है,और यहाँ पर हिंदी का प्रयोग सामान्य स्तर पर होता हैl इस समय यातायात पुलिस द्वारा दो और चार पहिया वाहनों पर,जिनके ऊपर आगे पीछे हिंदी में अंक पट्टी लगी है,उन पर चालान किया जा रहा हैl
इसके लिए यह आवश्यक है कि,इसकी जानकारी जन सामान्य को नहीं मालूम और स्वाभाविक रूप से हिंदीभाषी प्रान्त होने से हिंदी में अंक पट्टी(नम्बर प्लेट)बनवाकर लगवाते हैंl इस सम्बन्ध में न वहां विक्रेता और पट्टी बनाने वाले सलाह देते हैंl लगाने के बाद आजकल यातायात पुलिस इस प्रकार के वाहनों पर चालान लगाकर शासन के कोष की वृद्धि कर रही हैl
सामान्य नियम व्यवहारिक धरातल पर बनते हैं, ,और इसमें वहां चालक की कोई बदनीयती नहीं रहती है कि,हमें अंग्रेजी में अंक पट्टी नहीं बनवाना हैl जब चालान होने के बाद वह सोचने को बाध्य होता है कि हम किस देश के वासी हैं,जहाँ हमें अपनी भाषा के उपयोग पर भी पाबन्दी हैl
केन्द्र या राज्य शासन के नियम कुछ भी हों,पर वे नियम जन सामान्य को कष्टकारी हैं,इस पर पुर्नविचार कर यह सुनिश्चित किया जाए कि,हम गलत अंक या बिना अंक के वाहन चला रहे हैं तो अपराधी हैं,पर हिंदी या अंग्रेजी में अंक पट्टी होना कोई इतना बड़ा अपराध न माना जाए,जिसके कारण आर्थिक दंड का भागी होना पड़ेl
नियम सबको नहीं मालूम है और न यह परम्परा रही,पर जब विश्व हिंदी को अपनाने के लिए आतुर है,तब इन नियमों में शिथिलता अनिवार्य होना चाहिएl यह व्यवस्था अंग्रेजों के शासनकाल से शुरू है,और अब इसमें परिवर्तन की आवश्यकता हैl
जन सामान्य को नियमों की धारा-उपधारा का कोई ज्ञान है,पर दण्डित होने पर मानसिक तनावग्रस्त होने लगता है और यह सोचने को मजबूर होने लगता है कि,अभी भी हम गुलाम और भाषा के गुलाम हैं,अतःएक नियम को जानने के अनुरूप जानकारी सहित नियमावली सरलता से उपलब्ध होl सरकारी नियम अंग्रेजी भाषा में होने के कारण सुगमता से उपलब्ध न होने पर अपराधी बन जाते हैंl हमारे देश में इस प्रकार हिंदी को हिकारत से देखने की प्रवत्ति से बचाना चाहिए और हिंदी को बढ़ावा मिले ऐसे व्यवस्था बनेl इस आकस्मिक कार्यवाही का विरोध करते हुए हिंदी की अंक पट्टी को भी मान्यता मिले,ऐसी व्यवस्था केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा की जानी चाहिएl

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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