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नीलगगन में रंग गुलाल

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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देवलोक से उड़ती आई है, धरा में हरी पीली गुलाल,
सूर्यदेव भी चकित हो गए, देखकर गुलाल का धमाल।

नीलगगन में उड़ रही अजब लाल लाल रंग गुलाल,
श्रीकृष्ण रंग दिए राधा रानी जी के, गोरे-गोरे गाल।

सखियाँ खेल रही बिरज में, अपने पिया के संग होली,
आज बावरी हुई है बिरज में, सखा-सखियों की टोली।

सखा दौड़ रहे हैं भरकर पिचकारी, लेकर रंग हरी-हरी,
झांक रही सखी झरोखे से, मन में है श्याम से डरी-डरी।

रास रचाने के बहाने मोहना कृष्ण सखी को बुलाए हैं,
मटके में रंग भर-भर कर, सखियों को खूब नहाए हैं।

हुआ जीवन रंगीन, हरी, पीली, नीली गुलाल से।
बिन पिए धरा पे गिरते हैं, देख होली के रंग कमाल के।

झूम रहीं हैं सखियाँ गाती है गीत, आज होली रे रसिया,
राधा है तुम्हारे प्राण, हम तो हैं मुँह बोली रे मन बसिया।

देख सखियों का हर्षित मन, तन में लगा होली का रंग,
मन में ‘देवन्ती’ रोती है, आज नहीं है साजन हमारे संग॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है

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