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‘नोटबंदी’ की तरह हो राष्ट्रभाषा पर निर्णय-न्यायमूर्ति पंकज मित्तल

अधिवेशन…

इटावा (उप्र)।

राष्ट्रभाषा पर भी नोटबंदी की तरह निर्णय होना चाहिए। इसके लिए जनआंदोलन खड़ा किया जाए, ताकि सरकार निर्णय लेने को विवश हो।
इटावा हिंदी सेवा निधि के ३१वें वार्षिक अधिवेशन एवं हिंदी सेवी सम्मान समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने यह बात कही। इस्लामिया इंटर कॉलेज (इटावा) में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि व्हाट्सएप समूहों पर सुबह-सुबह ‘गुड मॉर्निंग’ के संदेश भेजने की बजाए राम-राम, ओम नमः शिवाय जैसे भारतीय अभिवादन भेज कर हिंदी की सेवा करनी चाहिए।
उच्च न्यायालय (प्रयाग) में राम जन्मभूमि विवाद के निस्तारण और सरकारी अधिकारियों के बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में भेजना अनिवार्य बनाने जैसे तमाम क्रांतिकारी बयानों से प्रख्यात हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि, हिंदी बोलने में हम स्वाभिमान और गर्व का भाव भूल गए, यहीं से अंग्रेजियत हावी हो गई। उनका कहना था कि, केंद्र सरकार को सारे आदेश- निर्देश हिंदी में ही जारी करने चाहिए, तभी अंग्रेजी के शोषण से आम जनता को बचाया जाना संभव होगा। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को आधार शिक्षा मातृभाषा में दिलाएँ।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. आर. मसूदी ने कहा कि उच्च न्यायालय में हिंदी नहीं है तो उसकी एक वजह न्यायाधीशों की अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा है। विधानपरिषद के सचिव रहे न्यायमूर्ति अशोक चौधरी ने कहा कि, मैंने सभी निर्णय हिंदी में ही दिए हैं। निर्णय जब आसान साधारण भाषा में होता है, तो पीड़ित को न्याय मिलने की खुशी अलग ही दिखती है।
न्यासी व संस्था के महासचिव वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने कहा कि, यह चिंता का विषय है कि हम परिजनों को निमंत्रण-पत्र भी अंग्रेजी में देने लगे हैं। हमें निश्चय कर अंग्रेजी के निमंत्रण वाले आयोजनों का बहिष्कार करना चाहिए।
कार्यक्रम में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई’ के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए। उन्होंने पूछा कि, भारत का संविधान और न्यायपालिका देश की जनता के लिए हैं या जनता संविधान और न्यायपालिका के लिए है ? न्यायमूर्तियों को जनता की भाषा सीखनी चाहिए या जनता को न्यायमूर्ति की भाषा सीखनी चाहिए ? उन्होंने पूछा कि यदि भारत १९४७ में स्वाधीन हो गया था तो दुनिया के अन्य देशों की तरह यहाँ के नागरिकों को अपनी भाषा में न्याय क्यों नहीं मिलता ? यह भी कहा कि महाराष्ट्र शासन ने जिस प्रकार दुकानों-व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बोर्ड आदि वहां की भाषा की लिपि में लिखना अनिवार्य किया है, हिंदी पट्टी के राज्य ऐसा क्यों नहीं करते ? मुंबई से आए न्यायिक क्षेत्र के आंदोलनकारी राजेंद्र ठक्कर ने कहा कि, जनता की भाषा में जनता को न्याय न देना अन्याय का मार्ग प्रशस्त करता है।
इंग्लैंड से आई कवयित्री डॉ. जय वर्मा ने कवि सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि, हिंदी को यूनेस्को में शामिल कराया जाना अति आवश्यक है। मासूम गाजियाबादी, शाहिद इलाहाबादी, कमलेश शर्मा, राजीव राज, अवनीश त्रिपाठी आदि कवियों ने खूब तालियाँ बटोरी। प्रख्यात कवि रामदरस मिश्र की जन्म शती मनाते हुए इटावा हिंदी सेवा निधि ने उनकी कृति ‘राम दरस १०० बरस’ का विमोचन किया।
कार्यक्रम में डॉ. नीरजा माधवी, न्यायमूर्ति महेंद्र गोयल, न्यायमूर्ति शुभा मेहता, न्यायमूर्ति उमेशचंद्र शर्मा, अधिवक्ता नवीन सिन्हा, डॉ. जुगनू महाजन व अभिलाषा गुप्ता आदि को हिंदी सेवा के लिए सम्मानित किया गया।
अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। मुख्य अतिथि केंद्र भू विज्ञान मंत्री की रिज्यूम ने वीडियो के माध्यम से अपना संदेश प्रेषित किया। न्यासी दिलीप कुमार गुप्त ने परिवार की राष्ट्रभाषा की परम्परा को प्रस्तुत किया।
संचालन शिक्षाविद डॉ. विद्याकांत तिवारी व साहित्यकार डॉ. कुश चतुर्वेदी ने किया। न्यायमूर्ति अशोक गुप्ता ने आभार प्रदर्शन में अपने पिता न्यायमूर्ति प्रेम शंकर गुप्त की विनम्र कृतज्ञ शैली की छाप छोड़ी।(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)