राज कुमार चंद्रा ‘राज’
जान्जगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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वर्तमान समय में परिवारों की जो स्थिति हो गयी है,वह अवश्य चिन्तनीय है। घरों में आज सुनाने को सब तैयार हैं मगर कोई सुनने को राजी नहीं। रिश्तों की मजबूती के लिये हमें सुनाने की ही नहीं, अपितु सुनने की आदत भी डालनी पड़ेगी।
माना कि आप सही हैं,मगर परिवारिक शान्ति बनाए रखने के लिये बेवजह सुन लेना भी कोई जुर्म नहीं। बजाय इसके कि अपने को सही साबित करने के चक्कर में पूरे परिवार को ही अशांत बनाकर रख दिया जाए। अपनों को हराकर आप कभी नहीं जीत सकते,अपनों से हारकर ही आप उन्हें जीत सकते हैं। जो टूटे को बनाना और रूठे को मनाना जानता है,वही तो बुद्धिमान है। आखिर में आपको हारना किससे है,परिवार से न और जीतना किसके लिए है,अपने लिये या परिवार के …! याद रखिए,आपकी सफलता और जीत में आपके परिवार का योगदान रहता है।
आज हर कोई अधिकार की बात कर रहा है,मगर अफ़सोस कि कोई कर्तव्य की बात नहीं कर रहा। आप अपने कर्तव्य का पालन करो,प्रतिफल मत देखो। जिन्दगी की खूबसूरती केवल इतनी नहीं कि,आप कितने खुश हैं,अपितु ये है कि आपसे कितने खुश हैं।अपनी खुशी को परिवार की खुशी बनाएं और सुखी रहिए।
परिचय-राज कुमार चंद्रा का साहित्यिक नाम ‘राज’ है। १ जुलाई १९८४ को गाँव काशीगढ़( जिला जांजगीर ) में जन्में हैं। आपका स्थाई पता-ग्राम और पोस्ट जैजैपुर,जिला जान्जगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अंग्रेजी और छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चंद्रा की शिक्षा-एम.ए.(राजनीति शास्त्र) और डिप्लोमा(इन विद्युत एवं कम्प्यूटर)है। कार्यक्षेत्र- लेखन,व्यवसाय और कृषि है। सामाजिक गतिविधि में सामाजिक कार्य में सक्रिय तथा रक्तदाता संस्था में संरक्षक हैं। राजनीति में रुचि रखने वाले राज कुमार चंद्रा की लेखन विधा-आलेख हैं। कई समाचार पत्रों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जनजागरुकता है। आपके पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज-स्वामी विवेकानंद तथा अटल जी हैं। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“भारत महान देश है। यहाँ की संस्कृति और परम्परा महान है,जो लोगों को अपनी ओर खींचती है। हिन्दी भाषा सबसे श्रेष्ठ है,ये जितनी उन्नति करेगी,देश उतना ही उन्नति करेगा।