कुल पृष्ठ दर्शन : 470

You are currently viewing पर आप तो…!

पर आप तो…!

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
**************************************************

डर लग रहा है…!
हाँ…!! लग रहा है
डरपोक हो……!
हाँ…हूँ,….!!!!!
क्योंकि,….!!
बाल बच्चेदार जो हूँ..!!
जिम्मेदारियाँ हैं…!!
अभी कई मुझ पर…,
आंदोलन नहीं कर सकता…
क्रांति का…।

क्रांति की तो,
सोच भी नहीं सकता…
पेट हैं कई अभी…,
आश्रित मुझ पर…
जो आस लगाए बैठे हैं…,
जो कई दिनों से
पेट को बांधे लेटे हैं…!

मेहनत-मजदूरी से,
कभी आधी…
कभी-कभी पूरी से,
कभी सुकून
कभी मजबूरी से,
जीवन अभी जीना भी तो है
कष्टों को पीना भी तो है,
जख्मों को सीना भी तो है
क्योंकि, उम्रभर,
बहुत…बहुत…
पसीना भी तो है।

क्योंकि…,
आम नागरिक ही हूँ
सत्ता में सत्ताधीश नहीं,
किसी बड़ी पहुंच का
भी तो मुझ पर…,
आशीष नहीं।

बोल भले सकता हूँ,
पर वो भी…
सीमित-सीमित…,
वो भी धीरे-धीरे…
वो भी चुपके-चुपके…,
जिससे…
आवाज ना हो जाए,
कहीं…
कहीं भड़क ना जाए,
कोई…
कहीं कड़क ना जाए,
कोई…
अन्यथा भूचाल आ सकता है
मुझ पर…,
या मुझ पर आश्रित
पेटों पर…।

पर आप तो…!
सक्षम हैं…
अधिकारों से भरकम हैं,
आप क्यों बैठे हैं…??
सीट पर इत्मीनान से,
ऐसे क्यों लेटे हैं…??

अधिकार…जो,
उसने आपको बहुत
दिए हैं…
पर साथ ही कर्तव्यों का,
बोध भी तो दिया है
वो आज कहां…
गुम है…??
हम जैसों की….,
हर जगह आज…
आँख क्यों नम है…??

कर्तव्य…,
जिनके लिए ली थी
कभी कसम…उसकी ही,
उसी में कुछ…
हमारा भी तो है,
पर क्यों वो आज हमारा
नहीं है…??
क्या हमारे कर्तव्यों में,
कोई कमी है…??
फिर हमारी आँखों में
ये नमी क्यों है…??
कभी हमारी भी तो सोचो,
जो तो…सिर्फ डरते हैं…
बहुत-बहुत…आपसे,
और आपके पास
आने से भी…।

हमको तो मतलब है…,
केवल अपनी…
कभी मिल रही…,
और कभी तो मिल भी नहीं
रही…रोजी से…
जो मिल भी रही है तो,
कभी आधी…
और कभी-कभी पूरी…
रूखी-सूखी रोटी से…।

उस निवाले को भी छीन
ले जाता है कोई…,
पूरे दिन पसीना बहवा कर
भी डकार जाता है…
कोई…
वो ही पसीने की बूंदें,
मेरे बच्चों को भी
पीनी है…
रोटी से ना सही तो भी…,
जिंदगी ही तो है
वो तो जीनी है…।

अभी तो ना जाने,
कितनी…??
‘अजस्र’ कसौटी से…
लंबी मिल गई तो ठीक,
नहीं तो अर्थ-संकुचित
छोटी से…!!
पर आप तो सक्षम हैं,
अधिकारों से भरकम हैं।

पर आप तो…,
हमारे अपने हैं…
हमारी भावी…,
सफलताओं के सपने हैं
और आप तो सूत्रधार हैं,
हमारी करम-कहानी के।

और हाँ…,
आप तो आधार भी हैं
भीम-संविधान में…,
अपनी बात बखानी के…
पर आप तो…।
पर आप तो…,
पर आप तो…॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|