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पावस

दुर्गेश राव ‘विहंगम’ 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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तरु की डालियाँ
झूम उठी,
मचल रहे हैं पल्लव
सर-सर चलती समीरl
मन में उठे उमंग,
चलो झूम उठें
वर्षा के संगl
हर बूंद में हीरे-सा नीर,
दादुर बोले टर-टर
चम-चम चमके दामिनीl
काला मेघ आया
चारों ओर वसुधा पर छाया,
कल-कल
बहती नदिया,
खेले संग नीर के मछलियाँl
भास्कर छुप गया
गोद में गगन की,
चल रही है
सत्ता मेघ और पवन कीll

परिचय-दुर्गेश राव का साहित्यिक उपनाम ‘विहंगम’ है।१९९३ में ५ जुलाई को मनासा (जिला नीमच, मध्यप्रदेश) के भाटखेड़ी बुजुर्ग में जन्मे दुर्गेश राव का वर्तमान निवास इंदौर(मध्यप्रदेश)में,जबकि स्थाई भाटखेड़ी बुजुर्ग तहसील मनासा है। इनकी शिक्षा-बी.एस-सी. और डी.एलएड है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत समाज हित में लेखन करना है। लेखन विधा-काव्य है। विहंगम को हिंदी, अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषा का ज्ञान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन से समाज सुधार है। प्रेरणा-हिंदी साहित्य के दीपक को जलाए रखना है। रुचि-कविता लिखना और काव्य पाठ करना है। 

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