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पूजा

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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भजन पूजन साधना सत्कार में,
क्यों फँसा आराधना विस्तार में ?
हृदय के गहरे अँधेरे भवन में,
कौन-सी पूजा मगन तू सृजन में ?

बंद पलकों के तुम्हारे नयन में, देवता नहीं है तुम्हारा, सदन में
कर रहे हलधर जहाँ श्रम खेत में,
श्रमिक पाहन तोड़ता जहाँ डगर में।

हाथ मिट्टी से सने तपते हैं दिन में,
जलते-झुलसते काम करते हैं तपन में
वे अनन्त नभ के नीचे मुक्त पवन में,
श्रम करते सर्दी-गर्मी जर्जर जीवन में।

देवता बसता श्रमिक के बाजुओं में,
और बसता खेत और खलिहान में।
देवता बसता भवन निर्माण में,
है अगर मिलना उतर तू समर में॥