कुल पृष्ठ दर्शन : 150

You are currently viewing प्रेम का शाश्वत संसार गढ़ रहीं सिद्धेश्वर की कविताएँ-डॉ. कर्ण

प्रेम का शाश्वत संसार गढ़ रहीं सिद्धेश्वर की कविताएँ-डॉ. कर्ण

पटना (बिहार)।

सिद्धेश्वर दृष्टि सम्पन्न रचनाकार हैं। हिंदी साहित्य की लगभग तमाम विधाओं को अपने सृजन कर्म से समृद्ध करने वाले सिद्धेश्वर जी की अपनी सहज-भाषा, सरल-तेवर और अनोखा अंदाज है। आज की अपनी काव्य प्रस्तुति में उन्होंने जिस भाव को परोसा है, वह प्रशंसनीय है। इनकी रचनाओं को सुनकर एकबारगी ऐसा लगा, जैसे मूल्यहीन हो रहे समय में कोई प्रेम का शाश्वत संसार गढ़ रहा हो। मानव जीवन की जटिलताओं के बीच आत्मविश्वास का समाधान इनकी रचनाओं को विशिष्ट बनाता है।
मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित शायर डॉ. पंकज कर्ण ने यह बात कही। मौका रहा हैलो फेसबुक साहित्य सम्मेलन के अंतर्गत वरिष्ठ कवि, कथाकार, चित्रकार सिद्धेश्वर की विविध रचनाओं के एकल काव्य पाठ की संगोष्ठी का।
इस अवसर पर सिद्धेश्वर जी ने -बीच चौराहे पर लुटती रही एक अबला की आबरू, उसके साथ होता रहा बलात्कार, मानवता होती रही शर्मसार ?/ नालायक औलाद देने के बजाय, मेरी कोख में तू बारूद भर दे, ताकि धर्म के नाम पर, अब किसी नालायक औलाद को, अपनी छाती का दूध पिलाने के बजाय, बारूद की गंध पिला दूँ! / मुझे जिंदगी दिखती है, मेहनतकशों के जिस्म से बह रहे पसीने में, हाथ ही नहीं तो खंजर किस काम का, संज्ञा हो नपुंसक तो क्या हो सर्वनाम का ? जैसी समकालीन कविताओं के साथ एक से बढ़कर एक गीत, ग़ज़ल व शायरी का पाठ किया। इस संगोष्ठी में करीब १२ श्रोताओं, पाठकों व रचनाकारों की समीक्षात्मक टिप्पणियां भी प्रसारित की गई।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शायर डॉ. मंजू सक्सेना (लखनऊ) ने कहा कि, एक सच्चा और अच्छा साहित्यकार वही होता है, जिसको हर मानव के दु:ख-सुख की गहरी अनुभूति हो और सिद्धेश्वर जी की हर रचना इस मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत है।सिद्धेश्वर जी की शायरी जहाँ ज़मीन से जुड़ी हुई है, वहीं कहीं अध्यात्म का पुट भी मिला है,-‘गाँवों-शहरों में घर भी बने, इसलिए ईंट-मिट्टी में हमको संवरना पड़ा’ तो दूसरी तरफ सिद्धेश्वर रूमानी ग़ज़ल लिखने में भी सिद्धहस्त हैं-‘मेरे दिल में दीप-सी जलती रही हो तुम /गीत-ग़ज़लों में मेरे ढलती रही हो तुम।’
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ लेखिका ऋचा वर्मा ने सिद्धेश्वर की रचनाओं पर कहा कि, जिस तरह से सिद्धेश्वर जी कला के विभिन्न आयामों को बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से हम सबके सामने लाते हैं, उसी प्रकार उनकी कविताएं जीवन के विभिन्न आयामों को सफलतापूर्वक अपने पाठकों के बीच लाने में सफल दिखती हैं। उनकी कविताओं में समाज, राजनीति, भ्रष्टाचार, धर्म, प्रेम की भावनाएं रोचक ढंग से लोगों के सामने आई हैं। इनकी बहुत-सी पंक्तियां अपने-आप में संपूर्ण दिखती हैं, ‘घर से बेघर कर दिया सरकार ने / हम कहां जाएंगे ?’
मुख्य वक्ता सपना चंद्रा (भागलपुर) ने कहा कि, सिद्धेश्वर जी की कविता, ग़ज़ल, शायरी जीवन के हर पहलू को छूती है। सिद्धेश्वर जी की ग़ज़ल की पंक्ति ‘न शिकवा प्यार से है, न शिकायत है यार से!, खुद लौट आए हैं हम अपने ही द्वार से!’ और ‘जख्म देकर दवा देती हो तुम/ ख़ुद को ऐसे मज़ा देती हो तुम’ यानी हर पंक्ति लाजवाब हैं।
अपूर्व कुमार (हाजीपुर) ने कहा कि, वर्तमान संदर्भ में हूंकार भरती हुई सिद्धेश्वर की कविताएं हमारे हृदय पर जबरदस्त प्रभाव डालती है। उनके लेखन की विशेषताएं एवं दूसरों को प्रोत्साहित करने का प्रबल सामर्थ्य सिद्धेश्वर को साहित्यिक सितारों में ध्रुव तारा बना देता है। हजारी सिंह सहित राज प्रिया रानी, कृष्ण मुरारी, विजया कुमारी मौर्य, सुधा पांडे, नमिता सिंह, अनीता मिश्रा, राम नारायण यादव और सुनील कुमार पाठक आदि ने भी विचार व्यक्त किए।