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बन्द हो बन्द की संस्कृति

डॉ.अशोक
पटना(बिहार)
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बन्द की संस्कृति,
देश हित में नहीं स्वीकार हो
संस्कृति कोश से,
निकालने का उत्कृष्ट
उत्तम विचार हो।

जनमानस गरीब अशक्त,
निर्बल कमजोर के लिए यह
एक कठोर प्रहार है,
बन्द की संस्कृति से
खूब तकलीफ,
मिलती है
जन-जन में दिखता,
घुटन भरा संसार है।

बन्द की संस्कृति,
रोज़ी-रोटी और
नौकरी में एक,
बड़ा अवरोध है
जनता की भलाई के लिए,
हम-सबको मिलकर,
करना मजबूती से
इसका प्रतिरोध है।

रेहड़ी-पटरी वाले,
रिक्शा चालक
खोमचे वाले मजदूर,
कास्तकार सब यहां
मजबूर हो जाते हैं,
सम्भ्रांत वर्ग के लोगों से
लगातार प्रताड़ना के,
चक्रव्यूह में फंस जाते हैं।

एक दिन की बंदी भी,
घर-घर में तबाही ला देती है
जन-जन में खुशहाली,
लाने के पहले
सम्भ्रांत वर्ग द्वारा,
खुशियां निगलना
प्रारंभ कर दी जाती है।

आवागमन रेल-बस,
रिक्शा साइकिल ट्राम
बैलगाड़ी सब इस उधम से,
बिल्कुल रूक जाती है
जन-सामान्य की,
रोज़ी-रोटी पर
बहुत बड़ी बाधा,
उत्पन्न हो जाती है।

बन्द की संस्कृति पर,
मजबूती से प्रहार हो।
कानून स्वच्छ व निर्मल बनाकर,
बन्द का आह्वान करने वालों पर,
मजबूती से प्रहार हो॥

परिचय-पटना(बिहार) में निवासरत डॉ.अशोक कुमार शर्मा कविता,लेख,लघुकथा व बाल कहानी लिखते हैं। आप डॉ.अशोक के नाम से रचना कर्म में सक्रिय हैं। शिक्षा एम.काम.,एम.ए.(राजनीति शास्त्र,अर्थशास्त्र, हिंदी,इतिहास,लोक प्रशासन एवं ग्रामीण विकास) सहित एलएलबी,एलएलएम,सीएआईआईबी, एमबीए व पीएच-डी.(रांची) है। अपर आयुक्त (प्रशासन)पद से सेवानिवृत्त डॉ. शर्मा द्वारा लिखित अनेक लघुकथा और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं,जिसमें-क्षितिज,गुलदस्ता, रजनीगंधा (लघुकथा संग्रह) आदि है। अमलतास,शेफालीका,गुलमोहर, चंद्रमलिका,नीलकमल एवं अपराजिता (लघुकथा संग्रह) आदि प्रकाशन में है। ऐसे ही ५ बाल कहानी (पक्षियों की एकता की शक्ति,चिंटू लोमड़ी की चालाकी एवं रियान कौवा की झूठी चाल आदि) प्रकाशित हो चुकी है। आपने सम्मान के रूप में अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच द्वारा काव्य क्षेत्र में तीसरा,लेखन क्षेत्र में प्रथम,पांचवां,आठवां स्थान प्राप्त किया है। प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।

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