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बांधे रखना मित्रता को

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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‘मित्रता’ ऐसा शब्द है,जिनसे मित्रता हो जाती है,
पुरुष हो या नारी,आवश्यकता तो मित्र की होती है।

यह जरूरी भी नहीं है,एक-दूजे से हो बेपनाह प्यार,
निर्मल मन से मित्रता हो तो,नहीं होगी कभी तकरार।

अटूट प्रेम करती थी,माता शबरी भी प्रभु श्रीराम से,
नि:स्वार्थ निर्मल प्रेम किया था,मात्र दर्शन नाम से।

जब-जब,रिश्तेदारों,में दूरी हो,मित्र सामने आ जाए,
रखे हाथ कंधे पर बोले,-मित्र मैं साथ हूँ,क्यों घबराए।

दु:ख-सुख में बिना बुलाए,आते हैं वही सही है मित्रता,
दूरदराज में रहकर भी,पत्राचार से जो निभाए मित्रता।

बिना धन-संपत्ति लिए,दिए ही,गम बाँट लेता है मित्र,
पुरुष हो या नारी,सबके जीवन में रहता है मित्र।

नारी को ससुराल में सास-पति से उलाहना मिलती है,
तब पत्र भेजकर सखी को,सखी ही सांत्वना देती है।

पुरुष-नारी की जग में अद्भुत होती है पवित्र मित्रता,
इनको कलंकित करने पर भी,बनी रहती है मित्रता।

नारी-पुरुष अपनी मित्रता को,हृदय में छुपा के रखते हैं,
दुश्मन जमाने के सामने,अनजान बन के वह रहते हैं।

नजर ना लगे ‘देवन्ती’,किसी की पवित्र मित्रता को,
‘प्रेम का ये बन्धन’ है,बांधे रखना सभी मित्रता को॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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