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मजबूरी है या मजबूर हो!

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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अब जनता कैसे कहे ???
सरकार से-
‘अब तो अपने दिमाग के ढक्कन खोलो!
कम से कम अब मानवतावादी बोल न बोलो!!’

मार्च में ही –
‘अति गर्मी’,
दिसंबर की
‘अति ठंडी-सी’
जनता से सह ली,
…देख ली!!!
चलो,सरकार से भी क्या कहें ?
अब क्या न कहें ???
फिल्म देखी,
और
घर की हो ली।

कैसे हैं लोग,
इस जहान में
अपनों के ही ‘आँसुओं’ संग,
खेलते हैं
‘ सप्तरंगी’, ‘बहुरंगी’ होली!

जनता कैसे कहे ?
सरकार से-
‘अब तो अपने दिमाग के ढक्कन खोलो!
कम से कम अब तो मानवतावादी बोल न बोलो!!’

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